बिलासपुर/कोरबा।कोरबा की निर्मला तिवारी को 1981 में भूमि अधिग्रहण के बदले नौकरी में धोखाधड़ी के बाद हाईकोर्ट ने उनके बेटे को नौकरी देने का आदेश दिया। कोर्ट ने एसईसीएल की गलती सुधारते हुए याचिकाकर्ता के हक को बहाल किया।
बिलासपुर हाईकोर्ट ने कोरबा की निर्मला तिवारी को 30 साल की कानूनी लड़ाई के बाद न्याय प्रदान किया है।
जस्टिस संजय के.अग्रवाल की सिंगल बेंच ने 1981 में भूमि अधिग्रहण के बदले नौकरी में धोखाधड़ी के मामले में दक्षिण पूर्व कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की गलती सुधारते हुए याचिकाकर्ता के बेटे उमेश तिवारी को नौकरी देने का आदेश दिया।
कोर्ट ने 6 जुलाई 2017 के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें गलत व्यक्ति को नौकरी दी गई थी।कोरबा के दीपका गांव में निर्मला तिवारी की 0.21 एकड़ जमीन 1981 में कोयला खदान के लिए अधिग्रहित की गई थी। पुनर्वास नीति के तहत उन्हें मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जानी थी।
1985 में मुआवजा तो दे दिया गया, लेकिन नौकरी एक फर्जी व्यक्ति नंद किशोर जायसवाल को दी गई, जिसने खुद को उनका बेटा बताया था।
निर्मला ने इस धोखाधड़ी की शिकायत की, जिसके बाद 2016 में नंद किशोर को बर्खास्त किया गया। हालांकि, एसईसीएल ने निर्मला के बेटे को नौकरी देने से इनकार कर दिया, यह तर्क देते हुए कि अधिग्रहण के समय जमीन उनके नाम पर म्यूटेट नहीं थी और उनका बेटा तब पैदा नहीं हुआ था।
हाईकोर्ट ने एसईसीएल के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि म्यूटेशन कब्जे का सबूत है, स्वामित्व का नहीं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब मुआवजा दिया गया था, तो निर्मला को जमीन का मालिक माना गया था। गलत व्यक्ति को नौकरी देने की भूल को सुधारते समय असली हकदार को उनका अधिकार मिलना चाहिए।
कोर्ट ने आदेश दिया कि उमेश तिवारी को 6 जुलाई 2017 से नौकरी और सभी लाभ प्रदान किए जाएं।कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सार्वजनिक उपक्रम को निष्पक्षता और सद्भावना से काम करना चाहिए। एसईसीएल ने न केवल अपने वादे का उल्लंघन किया, बल्कि गलत व्यक्ति को नौकरी देकर याचिकाकर्ता के साथ अन्याय किया। इस फैसले ने निर्मला तिवारी को लंबे संघर्ष के बाद न्याय दिलाया।
Editor – Niraj Jaiswal
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