नारायणपुर, छत्तीसगढ़ के गढ़बेंगाल निवासी 68 वर्षीय जनजातीय वाद्ययंत्र निर्माता और काष्ठ शिल्पकार पंडीराम मंडावी को 27 मई 2025 को राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा पद्मश्री सम्मान 2025 से अलंकृत किया गया। यह सम्मान उन्हें पिछले पांच दशकों से छत्तीसगढ़ की विलुप्तप्राय पारंपरिक वाद्य और काष्ठ शिल्पकला को संरक्षित करने और वैश्विक मंचों पर भारत की सांस्कृतिक धरोहर को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए प्रदान किया गया।
पंडीराम मंडावी ने बांसुरी, टेहण्डोंड, डूसीर, सिंग की तोड़ी, कोटोड़का और उसूड़ जैसे लोक वाद्य यंत्रों के निर्माण और प्रदर्शन में अद्वितीय दक्षता हासिल की है। उनकी कला न केवल छत्तीसगढ़ के लोकगीतों को जीवंत करती है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की मिसाल भी पेश करती है।
मंडावी की कला यात्रा रूस, फ्रांस, जर्मनी, जापान और इटली जैसे देशों तक फैली है, जहां उन्होंने सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल के रूप में भारत का गौरव बढ़ाया। उनकी रचनाएं, विशेष रूप से बांस से निर्मित ‘सुलूर’ बांसुरी, ने विश्व भर में ख्याति प्राप्त की है।
छत्तीसगढ़ शासन ने भी उनके योगदान को सम्मानित करते हुए 2024 में दाऊ मंदराजी सम्मान से नवाजा था। मंडावी ने अपनी कला को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए अपने बेटों को भी प्रशिक्षित किया है, जिनमें उनके बेटे बलदेव मंडावी ने मूर्तिकला में एमए किया है और पारंपरिक कला में आधुनिकता का समावेश कर रहे हैं।
पंडीराम मंडावी नारायणपुर जिले के दूसरे व्यक्ति हैं, जिन्हें पद्मश्री सम्मान प्राप्त हुआ है। इससे पहले 2024 में पारंपरिक वैद्यराज हेमचंद मांझी को यह सम्मान मिला था।
इस उपलब्धि पर नारायणपुर जिले में हर्ष का माहौल है। स्थानीय प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और नागरिकों ने मंडावी को बधाई दी है और इसे जिले के लिए गौरवमयी क्षण बताया है।
मंडावी ने इस सम्मान पर खुशी जताते हुए कहा, “मैंने अपने पिता से 15 वर्ष की उम्र में यह कला सीखी थी। मैं चाहता हूं कि नई पीढ़ी इसे अपनाए ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर जीवित रहे।” वे वर्तमान में स्थानीय घोटुल को डिजाइन करने और अपनी कला के लिए एक स्थायी संग्रहालय स्थापित करने की दिशा में कार्यरत हैं।
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