प्रदूषण की जद में पावर हब : परेशानियों से मुक्ति पाने लोगों में छटपटाहट

कोरबा। देश और दुनिया के नक्शे में पावर हब के साथ सर्वाधिक प्रदूषित नगरों में शुमार कोरबा के सामने अनगिनत समस्याएं हैं और नागरिकों के सामने इनसे मुक्त होने की छटपटाहट। धुआं, धूल और कई तरह के प्रदूषण ने एक प्रकार से जन स्वास्थ्य को प्रभावित कर रखा है। उद्योगों की मनमानी हरकतों पर पर्यावरण संरक्षण मंडल की कार्रवाई पेनाल्टी तक ही सिमटी हुई है। ठोस कार्रवाई नहीं करने से उनका मनोबल लगातार बढ़ रहा है।


प्रदूषण के मानक स्तर पर नियंत्रण न होने के चक्कर में ही एनजीटी को आखिरकार पिछले वर्षों में नकेल कसनी पड़ी और सीएसईबी के 240 मेगावाट स्थापित क्षमता वाले बिजली घर को हमेशा के लिए प्रचालन से बाहर होना पड़ा। 60 के दशक में पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश सरकार ने सोवियत रूस के सहयोग से इसकी स्थापना की थी। छत्तीसगढ़ गठन के बाद यह पहला ऐसा संयंत्र रहा जो कौडिय़ों के मोल बिक गया। वर्तमान में कोरबा जिले में सीएसईबी के अलावा एनटीपीसी, बालको समेत निजी क्षेत्र की बिजली परियोजनाएं संचालित हो रही है।

यह बात सही है कि प्रदेश और देश के लिए इनके द्वारा उत्पादित बिजली उपयोगी साबित हो रही है। प्लांटों में हर रोज 6 लाख टन कोयला की खपत हो रही है और इसमें से डेढ़ लाख टन कोयला राख के रूप में उत्सर्जित हो रहा है। इसका व्यवस्थित भंडार और परिवहन अपने आपमें बड़ा संकट है।

उद्योगों ने सुरक्षित भंडारण से लेकर दूसरी प्रक्रियाओं का ठेका तो दे रखा है लेकिन सही क्रियान्वयन की कमी से आसपास के वातावरण को इससे नुकसान हो रहा है। मनमाने तरीके से राख के डंप करने के चलते कृषि से लेकर दूसरे हित बाधित हो रहे हैं। वहीं उद्योगों के धुएं से होने वाला प्रदूषण भी जन स्वास्थ्य के लिए तमाम तरह की चुनौतियां पेश कर रहा है।

कुछ यही मामला जिले में संचालित कोयला खदानों से होने वाले वायु प्रदूषण को लेकर बना हुआ है। सभी मामलों में वे यूनियन मौन हैं जिन्होंने एक तरह से व्यापक जनहित का कांट्रैक्ट ले रखा है। दूसरी तरफ औद्योगिक स्वास्थ्य से संबंधित विषयों पर नजर रखने के लिए राज्य सरकार ने कारखाना निरीक्षक के अलावा अन्य अधिकारी नियुक्त कर रखे हैं।

वहीं छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल भी प्रदूषण के स्तर को मापने के लिए एजेंसियों के सहारे काम कर रहा है। लेकिन उसकी भूमिका इस प्रकार के प्रकरणों में उद्योगों पर केवल हजारों और लाखों की पेनाल्टी लगाने से ज्यादा कुछ नहीं है। बार-बार पेनाल्टी की कार्रवाई करने के साथ संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि विभाग सक्रिय है लेकिन उद्योगों की मनमानी चरम पर है। उद्योगों की वजह से हो रहे बड़े नुकसान से लोगों में इस बात की बेचैनी है कि वे प्रदूषण के असर से आखिर मुक्त कैसे हों। अब तक सरकार की ओर से ठोस कार्ययोजना नहीं बनने से लोग नाराज हैं।