कोरबा जिले ने कोयला उत्पादन के क्षेत्र में एक बार फिर अपनी ताकत दिखाई है। कोल इंडिया लिमिटेड ने अपनी ‘सुपर 35 माइंस’ की सूची जारी की है, जिसमें कोरबा की चार प्रमुख खदानें शामिल हैं। ये खदानें कोल इंडिया के 73 फीसदी उत्पादन लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की गेवरा ओपनकास्ट माइंस विश्व की दूसरी सबसे बड़ी खुली खदान है और इस सूची में पहले स्थान पर है।
कुसमुंडा माइंस, जो विश्व की चौथी सबसे बड़ी कोल माइंस है, सूची में दूसरे स्थान पर है, जबकि दीपका ओपनकास्ट माइंस तीसरे स्थान पर काबिज है। इसके अलावा, छाल और मानिकपुर ओपनकास्ट माइंस को भी इस प्रतिष्ठित सूची में स्थान मिला है।
कोल इंडिया के उत्पादन लक्ष्य में कोरबा का दबदबा
चालू वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में कोल इंडिया को 203.45 मिलियन टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य दिया गया था। इस अवधि में कंपनी ने 88.42 फीसदी यानी 179.9 मिलियन टन कोयला उत्पादन हासिल कर लिया है। कोयला मंत्रालय ने इस वित्तीय वर्ष के लिए कोल इंडिया को 875 मिलियन टन कोयला उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य सौंपा है। कोरबा की इन ‘सुपर 35’ खदानों की बदौलत ही कोल इंडिया को अपने इस लक्ष्य को पूरा करने की उम्मीद है।
गेवरा, कुसमुंडा और दीपका: कोरबा की ताकत
एसईसीएल की गेवरा माइंस, जो 1981 से संचालित हो रही है, ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 59 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया और इसकी वार्षिक उत्पादन क्षमता 70 मिलियन टन है। कुसमुंडा माइंस ने उसी अवधि में 50 मिलियन टन से अधिक कोयला उत्पादन किया, जो देश में गेवरा के बाद दूसरी खदान है, जिसने यह उपलब्धि हासिल की। दीपका ओपनकास्ट माइंस की वार्षिक क्षमता 25 मिलियन टन है, और यह भी कोल इंडिया के उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। छाल और मानिकपुर माइंस भी इस सूची में शामिल होकर कोरबा के कोयला उत्पादन की ताकत को और मजबूत कर रही हैं।
पर्यावरण और विस्तार की चुनौतियां
हालांकि, इन खदानों के विस्तार के लिए भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी जैसे मुद्दे चुनौतियां बने हुए हैं। गेवरा माइंस को 70 मिलियन टन की वार्षिक उत्पादन क्षमता के लिए पर्यावरण मंजूरी मिल चुकी है, जबकि कुसमुंडा को 75 मिलियन टन के लिए मंजूरी का इंतजार है। स्थानीय ग्रामीणों के विरोध और पुनर्वास की मांगों ने विस्तार योजनाओं को जटिल बनाया है। फिर भी, आधुनिक तकनीकों जैसे ‘सर्फेस माइनर’ और पर्यावरण-अनुकूल खनन प्रक्रियाओं के उपयोग से ये खदानें उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी कदम उठा रही हैं।
कोरबा: देश का ऊर्जा केंद्र
कोरबा जिला, जो हसदेव नदी के बेसिन में स्थित है, देश के कोयला उत्पादन का लगभग 10 फीसदी हिस्सा अकेले देता है। गेवरा, कुसमुंडा, दीपका, छाल और मानिकपुर जैसी खदानों ने कोरबा को भारत का ‘ऊर्जा केंद्र’ बनाया है। इन खदानों से निकलने वाला कोयला न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि देश के अन्य राज्यों की ऊर्जा जरूरतों को भी पूरा करता है। एसईसीएल के सीएमडी डॉ. प्रेम सागर मिश्रा ने इस उपलब्धि पर गर्व जताते हुए कहा, “यह छत्तीसगढ़ और देश के लिए गौरव का क्षण है कि विश्व की शीर्ष पांच कोल माइंस में से दो हमारे पास हैं।”
Editor – Niraj Jaiswal
Mobile – 9754876042
Email – urjadhaninewskorba@gmail.com
Address – Press Complex, T.P. Nagar, Korba C.G. 495677