खनिज विभाग जुर्माना वसूल कर अवॅैध को वैध बना रहा लेकिन पर्यावरण अमला सुस्त
कोरबा । जिले में रेत का अवैध खनन और परिवहन के साथ-साथ भण्डारण में लगे लोगों को लाभ देने के लिए जुर्माना का रास्ता चुना गया है। अवैध कार्य को जुर्माना लगाकर वैध बताने की कवायदों में जहां अधिकारी और मैदानी अमला जुटे हैं वहीं वे ऐसा करके भले ही सरकार को जुर्माना के रास्ते राजस्व आय देने की बात करते हों, लेकिन यह रास्ता अवैध रेत भण्डारण करने वालों को बेलगाम काम करने की छूट देने जैसा है।
जिले में पिछले साल भर के भीतर रेत के कारोबार में बहुत लोगों ने हाथ आजमाना शुरू किया और आऊटर क्षेत्रों में भण्डारण स्थल बनाकर विभाग की नजरों से बचा कर यह गोरखधंधा लगातार किया जा रहा है। नामचीन लोगों के संरक्षण में पहले तो नदियों को मशीनों से खोद कर अवैध भंडारण धड़ल्ले से किया गया और यह बात किसी माध्यम से प्रशासन तक पहुंची तो विभागीय अमले ने मौके पर जाकर जुर्माना की वसूली के साथ ही पूरे अवैध भण्डारण को वैध बनाने का काम बखूबी किया है।
एक तरीके से विभाग इसे सही तो ठहरा रहा है और नियमत: भी सही कहा जा सकता है लेकिन दूसरी तरफ इस प्रवृत्ति से अवैध भण्डारकर्ताओं का मनोबल बेतहाशा बढ़ा है। जिन्हें शासन के नियमों के अनुरूप रेत घाट आबंटित किए गए हैं, उन्हें सुचारू संचालन में भले दिक्कत आ रही हो लेकिन अवैध रूप से काम करने वालों के रास्ते हमेशा क्लीयर किए जाते रहे हैं।
सारा कुछ प्रशासन और विभाग नियमों के तहत बताता है लेकिन ऐसे लोग जो चन्द रूपए का जुर्माना भरकर इसकी आड़ में लाखों रुपए कीमत के सैकड़ों-हजारों ट्रिप अवैध रेत बेच रहे हैं, वे अपने लाभ के लिए जिस बेदर्दी से जीवित नदी-नालों का सीना छलनी कर रहे हैं, उसकी भरपाई और ऐसे लोगों पर कठोर कार्रवाई कौन करेगा? पर्यावरण संरक्षण विभाग इस मामले में पूरे समय खामोश रहा है।
क्या इस विभाग के अधिकारियों को यह नहीं पता कि रेत के लिए नदियों को किस तरह से बेतरतीब खोदा जा रहा है। ऐसा एक भी मामला अब तक सामने नहीं आया है और न लाया गया है जिसमें पर्यावरण विभाग का कोई भी अधिकारी या अमला किसी भी अवैध खनन प्रभावित नदी क्षेत्र में पहुंचकर कार्रवाई किया हो।
Editor – Niraj Jaiswal
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