मनरेगा में फर्जी जियो-टैगिंग और धन गबन का खुलासा, ठेकेदार सिस्टम की आड़ में भ्रष्टाचार

कोरबा।केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में कोरबा जिले के करतला विकासखंड में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी और धन गबन का मामला सामने आया है। ग्राम पंचायत बेहरचुंवा के एक हितग्राही के नाम पर स्वीकृत पक्का फर्श कोटना निर्माण के लिए फर्जी जियो-टैगिंग और मस्टर रोल के जरिए 12,376 रुपये की राशि गबन करने का खुलासा हुआ है। जांच में विभागीय सांठगांठ और ठेका सिस्टम की पुष्टि हुई, लेकिन दोषियों पर ठोस कार्रवाई के बजाय केवल राशि जमा करा कर मामले को दबाने की कोशिश की गई।

करतला विकासखंड के ग्राम पंचायत बेहरचुंवा निवासी हितग्राही देवनाथ पिता राम सिंह के नाम पर वर्ष 2023 में पक्का फर्श कोटना निर्माण स्वीकृत हुआ था। रोजगार सहायक राजनंदनी महंत ने बेहरचुंवा से 8-10 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत नवापारा में बने कोटना निर्माण का फर्जी जियो-टैग कर 12,376 रुपये का फर्जी मजदूरी भुगतान कराया। जांच में पाया गया कि बेहरचुंवा में आज तक देवनाथ का कोटना निर्माण शुरू भी नहीं हुआ। नवापारा में निर्मित कोटना पर बेहरचुंवा का नाम लिखकर जियो-टैग किया गया और बाद में उसे मिटाने की कोशिश की गई, लेकिन सफेदी सूखने पर नाम स्पष्ट दिखाई देता रहा।

जांच में उजागर हुई सांठगांठ जिला पंचायत सदस्य श्रीमती सावित्री अजय कंवर की शिकायत के बाद करतला जनपद सीईओ ने जांच दल गठित किया, जिसमें आलोक कुमार गुप्ता (सहायक विकास विस्तार अधिकारी), जनपद सिंह राठिया (वरिष्ठ करार रोजगार अधिकारी), और लोकविजय (तकनीकी सहायक) शामिल थे।

जांच में पाया गया कि रोजगार सहायक और सचिव ने मस्टर रोल और मांग पत्र कार्यालय में जमा नहीं किया, फिर भी ठेकेदार अजय कुमार अग्रवाल और तत्कालीन ऑपरेटर दीपक कुमार अग्रवाल ने सांठगांठ कर राशि आहरित की।

राशि का गबन सामने आने पर रोजगार सहायक ने इसे नोडल खाते में जमा करा दिया, और मामला नस्तीबद्ध करने का प्रस्ताव जिला पंचायत सीईओ को भेज दिया गया।

मनरेगा नियमों के अनुसार, ग्राम पंचायत ही निर्माण एजेंसी होती है और ठेकेदारों की कोई भूमिका नहीं होती। फिर भी, इस मामले में ठेकेदार और ऑपरेटर की सांठगांठ से फर्जी भुगतान किया गया। विभागीय सूत्रों के अनुसार, मांग पत्र, मस्टर रोल, और एफटीओ प्रक्रिया में रोजगार सहायक, सचिव, सरपंच, और मनरेगा कार्यक्रम अधिकारी के डिजिटल हस्ताक्षर अनिवार्य होते हैं। बिना इनकी सांठगांठ के फर्जीवाड़ा संभव नहीं है। जांच में ठेकेदार और ऑपरेटर पर दोष मढ़ा गया, लेकिन फर्जी हस्ताक्षर के लिए कोई पुलिस शिकायत दर्ज नहीं की गई, जो जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।

जांच में ठेकेदार और ऑपरेटर की भूमिका स्पष्ट होने के बावजूद उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया। राशि जमा होने के बाद मामला बंद करने की कोशिश की गई, जो भ्रष्टाचार पर नकेल कसने में प्रशासन की नाकामी को दर्शाता है। परिजनों और स्थानीय लोगों का कहना है कि इस तरह के फर्जीवाड़े पहले भी हो चुके हैं, और बिना कड़ी कार्रवाई के भ्रष्ट प्रवृत्ति के लोग सरकारी धन का दुरुपयोग करते रहेंगे।

हितग्राही और स्थानीय निवासियों ने मांग की है कि मामले की गहन जांच हो और फर्जी हस्ताक्षर करने वालों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए। साथ ही, मनरेगा में ठेका सिस्टम को खत्म कर पारदर्शिता सुनिश्चित करने की मांग उठ रही है। यह मामला करतला विकासखंड में मनरेगा की कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को उजागर करता है।