कोरबा जिले में पिछले तीन दशकों से चली आ रही हाथी-मानव द्वंद्व की समस्या ने एक बार फिर ग्रामीणों को भय और नुकसान के साये में ला दिया है। आज तड़के करीब 4:30 बजे कोरबा वन मंडल के तौलीपाली और कुदमुरा गांवों में एक दंतैल हाथी ने जमकर उत्पात मचाया, जिससे ग्रामीणों के घर और फसलें तबाह हो गईं। इस घटना ने वन विभाग की नाकाम कोशिशों और लंबित क्षतिपूर्ति प्रकरणों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
तौलीपाली गांव में दंतैल हाथी ने बालक राम राठिया के घर को निशाना बनाया। बिजली गुल होने के कारण अंधेरे का फायदा उठाकर हाथी ने घर तोड़ दिया और एक बोरी धान व एक कट्टी प्याज को नुकसान पहुंचाया। बालक राम ने बताया कि हाथी धान की बोरी को सूंड में लेकर दूर फेंककर खा गया। वहीं, कुदमुरा में पुनी राम घनुहार और मनमोहन राठिया के घरों को क्षतिग्रस्त कर दो-तीन बोरी धान बर्बाद कर दिया। इस घटना से दोनों गांवों में दहशत का माहौल है। ग्रामीणों ने वन विभाग से उचित मुआवजे की मांग की है।
कोरबा और कटघोरा वन मंडल में हाथियों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक ओर ग्रामीण अपनी जान-माल और फसलों की चिंता में हैं, वहीं हाथी भी मानव की गतिविधियों से भयभीत हैं। सोमवार को कटघोरा-पसान मार्ग पर सामने आए एक वीडियो में ग्रामीण शोर मचाकर हाथियों को जंगल की ओर खदेड़ते दिखे। भयभीत हाथी चिंघाड़ते हुए भाग रहे थे, लेकिन ग्रामीणों का यह व्यवहार खतरनाक साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आक्रामक हुए हाथी को नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है।
हाथी-मानव द्वंद्व को रोकने के लिए वन विभाग की कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं। हाथियों की ट्रैकिंग में देरी और अपर्याप्त निगरानी के कारण आए दिन घटनाएं सामने आ रही हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि फसलों और संपत्ति के नुकसान की क्षतिपूर्ति के कई प्रकरण महीनों से लंबित हैं। जो मुआवजा मिलता भी है, वह नुकसान की आंशिक भरपाई करता है, और उसमें भी कथित तौर पर सेंधमारी की शिकायतें हैं।
वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच सालों में छत्तीसगढ़ में हाथी हमलों में 320 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें कोरबा जिला सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल है। लेमरू एलिफेंट रिजर्व जैसी योजनाएं फाइलों में दब गई हैं, और जंगलों की कटाई व तस्करी ने हाथियों के प्राकृतिक आवास को और संकट में डाल दिया है।
ग्रामीणों का कहना है कि वन विभाग केवल चेतावनी जारी करने तक सीमित है, जबकि ठोस कदमों का अभाव है। तौलीपाली के बालक राम राठिया ने कहा, “अंधेरे में हाथी ने घर तोड़ दिया, लेकिन वन विभाग की टीम सुबह ही पहुंची। मुआवजा भी समय पर नहीं मिलता।” कुदमुरा के किसानों ने भी फसलों और संपत्ति के नुकसान के लिए तत्काल राहत की मांग की है। ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि हाथियों के भोजन और पानी की व्यवस्था में कमी के कारण वे बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं।
हाथी-मानव द्वंद्व को लेकर न तो कांग्रेस और न ही भाजपा सरकारों ने कोई ठोस नीति लागू की है। विशेषज्ञों का कहना है कि हाथियों के लिए बेहतर रहवास, भोजन, और पानी की व्यवस्था के साथ-साथ जंगलों की सुरक्षा और तस्करी पर रोक जरूरी है। लेमरू एलिफेंट रिजर्व जैसे प्रोजेक्ट को लागू करने में देरी और भ्रष्टाचार के आरोपों ने समस्या को और जटिल बना दिया है। ग्रामीणों ने मांग की है कि सरकार और वन विभाग इस दिशा में गंभीर कदम उठाए, ताकि नुकसान की भरपाई और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
कोरबा में हाथी-मानव द्वंद्व एक गंभीर समस्या बन चुका है, जिसका समाधान तत्काल और प्रभावी कदमों के बिना संभव नहीं है। वन विभाग को निगरानी बढ़ाने, क्षतिपूर्ति प्रक्रिया को तेज करने और हाथियों के लिए सुरक्षित कॉरिडोर सुनिश्चित करने की जरूरत है। यह घटना एक बार फिर पर्यावरण संरक्षण और मानव-हाथी सह-अस्तित्व की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
Editor – Niraj Jaiswal
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