18 साल से सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहा परिवार, लक्ष्मीन बाई और बच्चों का समाज से हुक्का-पानी बंद

सक्त्ती ।डभरा तहसील के सकराली गांव में लक्ष्मीन बाई निषाद और उनका परिवार पिछले 18 सालों से सामाजिक बहिष्कार का दर्दनाक दंश झेल रहा है। इस परिवार को समाज से पूरी तरह काट दिया गया है, जिसमें हुक्का-पानी, बोल-चाल और किसी भी तरह की मदद पर पाबंदी लगा दी गई है। यह अमानवीय बहिष्कार 2007 में एक बंटवारे के विवाद से शुरू हुआ, जो आज तक इस परिवार के लिए अभिशाप बना हुआ है।

लक्ष्मीन बाई, जो अब विधवा हैं, अपने दो पुत्रों और एक पोते के साथ रहती हैं। उनके पति अभय निषाद के जीवित रहते हुए उनके और उनके दो भाइयों गोरे निषाद और छोटू राम के बीच बंटवारे के लिए समाज की पंचायत बुलाई गई थी।

पंचायत में लिखित रूप से तय हुआ कि अभय को चार कमरे का घर, 50 डिसमिल जमीन और 10 हजार रुपये नकद मिलेंगे। लेकिन यह घर वास्तव में मौजूद ही नहीं था। जब लक्ष्मीन और अभय ने इस पर आपत्ति जताई, तो समाज के मुखियाओं ने उनकी बात सुनने के बजाय उन पर ‘सामाजिक अवमानना’ का आरोप लगाकर पूरे परिवार को बहिष्कृत कर दिया।

सकराली गांव में निषाद (केवट) समाज के करीब 80 परिवार रहते हैं, और सभी को लक्ष्मीन बाई के परिवार से किसी भी तरह का संपर्क करने से मना किया गया है। यदि कोई व्यक्ति इस परिवार से बातचीत या मदद करता है, तो उस पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाता है। लक्ष्मीन बाई के पुत्र नौरतन निषाद ने बताया कि एक छोटे से विवाद ने उनके परिवार को 18 सालों तक समाज से अलग-थलग कर दिया।

यह मामला भारतीय संविधान में दिए गए समानता और सामाजिक जीवन के अधिकार के हनन का गंभीर उदाहरण है। लक्ष्मीन बाई का परिवार सामाजिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित हो रहा है। ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रशासन से इस मामले में हस्तक्षेप कर परिवार को न्याय दिलाने की मांग की है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस परिवार को 18 साल से चले आ रहे इस अमानवीय बहिष्कार से मुक्ति दिला पाएगा?

नौरतन ने कहा, “हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही। हम समाज में सम्मान के साथ जीना चाहते हैं।” सक्त्ती जिला प्रशासन और संबंधित संस्थाओं से इस परिवार को न्याय और सामाजिक स्वीकार्यता दिलाने की उम्मीद की जा रही है, ताकि लक्ष्मीन बाई और उनके परिवार को फिर से सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिल सके।