रायपुर। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन (सीजीएमएससी) द्वारा आपूर्ति की गई दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता पर एक बार फिर सवाल उठे हैं। मरीजों पर प्रतिकूल प्रभाव की शिकायतों के बाद सेफोटैक्सिम इंजेक्शन (बैच नंबर CT4214) के उपयोग पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई है। इसके साथ ही हाइड्रोक्सयूरिया कैप्सूल, फेनिटाइन इंजेक्शन और क्लियर एंड स्योर ब्रांड की गर्भावस्था जांच किट की गुणवत्ता भी संदेह के घेरे में है। दवा आपूर्ति प्रणाली में गंभीर अनियमितताओं की आशंका के बीच उच्च स्तरीय जांच की मांग तेज हो गई है।
सेफोटैक्सिम इंजेक्शन पर प्रतिबंध
सीजीएमएससी द्वारा आपूर्ति किए गए सेफोटैक्सिम इंजेक्शन (बैच नंबर CT4214, निर्माण तिथि जुलाई 2024, समाप्ति तिथि जून 2026) को महासमुंद और कोरबा के स्वास्थ्यकर्मियों की शिकायतों के बाद प्रतिबंधित कर दिया गया है। शिकायतों में कहा गया कि इस इंजेक्शन के उपयोग से मरीजों की तबीयत बिगड़ रही थी। यह शक्तिशाली एंटीबायोटिक इंजेक्शन न्यूमोनिया, यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, त्वचा, जोड़ों, हड्डियों और मस्तिष्क के गंभीर संक्रमणों के इलाज में उपयोग किया जाता है। सीजीएमएससी ने सभी केंद्रों से इस बैच के स्टॉक को तुरंत वापस मंगाने का आदेश दिया है।
हाइड्रोक्सयूरिया और फेनिटाइन इंजेक्शन भी अमानक
सिकलसेल संस्थान में हाइड्रोक्सयूरिया 500 मिलीग्राम की 17,500 कैप्सूल (बैच Z-704 और Z-23-705) अमानक पाई गईं। यह दवा सिकलसेल रोग, गर्भाशय और डिम्बग्रंथि कैंसर के इलाज में महत्वपूर्ण है। इसी तरह, फेनिटाइन सोडियम इंजेक्शन (बैच CBY 2503) भी गुणवत्ता जांच में फेल हो गया। यह इंजेक्शन मिर्गी और सिर की चोट से होने वाले झटकों के इलाज में आवश्यक है। पहले भी सीजीएमएससी द्वारा आपूर्ति की गई आइड्रॉप, बुखार की गोलियाँ और फॉलिक एसिड जैसी दवाएँ अमानक पाई जा चुकी हैं, जिससे आपूर्ति प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
गर्भावस्था जांच किट की शिकायतें
सीजीएमएससी द्वारा वितरित क्लियर एंड स्योर ब्रांड की गर्भावस्था जांच किट भी 50 प्रतिशत तक गलत परिणाम दे रही है। रायपुर के कचना पीएचसी सहित कई स्वास्थ्य केंद्रों से इसकी शिकायतें सामने आई हैं। अब तक 7.53 लाख किट वितरित हो चुकी हैं, जबकि 6.50 लाख किट वेयरहाउस में मौजूद हैं। इन किटों की गलत रिपोर्ट्स ने गर्भवती महिलाओं और स्वास्थ्यकर्मियों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है।
आपूर्ति प्रणाली में अनियमितताएँ
सीजीएमएससी की दवा आपूर्ति प्रणाली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। जांच से पहले दवाओं को पास कर दिया जाता है, लेकिन वितरण के दौरान घटिया या जल्दी एक्सपायर होने वाली दवाएँ भेजी जा रही हैं। इससे आपूर्ति प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की आशंका गहरा गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्रीकृत सूचना प्रणाली के अभाव में अमानक दवाओं और निर्माताओं की जानकारी अन्य राज्यों तक नहीं पहुँच पाती, जिसका फायदा कुछ कंपनियाँ उठा रही हैं।
मरीजों के स्वास्थ्य पर खतरा
अमानक दवाओं और इंजेक्शनों के उपयोग से मरीजों के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। सिकलसेल रोगियों को दी जा रही हाइड्रोक्सयूरिया की अमानक गोलियाँ और मिर्गी के मरीजों के लिए फेनिटाइन इंजेक्शन की खराब गुणवत्ता से उपचार प्रभावित हो रहा है। गर्भावस्था जांच किट की गलत रिपोर्ट्स ने भी स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता को कम किया है। बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगाँव और रायपुर जैसे जिलों में इन दवाओं का वितरण जारी रहने की शिकायतें सामने आई हैं, जिसके बाद सीजीएमएससी ने इनके वापसी के आदेश दिए हैं।
उच्च स्तरीय जांच की मांग
लगातार सामने आ रही शिकायतों और अमानक दवाओं के मामलों ने सीजीएमएससी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों ने इस मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। पूर्व में भी सीजीएमएससी द्वारा जम्मू-कश्मीर की विवेक फार्माकेम से सेफ्ट्रियाक्सोन इंजेक्शन और डिक्लोफेनाक सोडियम टैबलेट की खरीद पर सवाल उठे थे, क्योंकि इन दवाओं पर अन्य राज्यों में प्रतिबंध था। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी गलतियाँ मरीजों के जीवन को खतरे में डाल रही हैं और आपूर्ति प्रणाली में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।
प्रशासन का रुख
सीजीएमएससी की प्रबंध निदेशक पadmini भोई साहू ने कहा कि अमानक दवाओं की शिकायत मिलते ही उनके वितरण पर रोक लगाई गई है और स्टॉक वापस मंगाया जा रहा है। साथ ही, इन दवाओं की पुनर्जाँच के लिए प्रयोगशालाओं में भेजा जाएगा। हालांकि, कई अस्पतालों में इन दवाओं का उपयोग अभी भी जारी होने की खबरें चिंता का विषय हैं।
सीजीएमएससी की दवा आपूर्ति में बार-बार सामने आ रही खामियों ने मरीजों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल दिया है। सेफोटैक्सिम इंजेक्शन, हाइड्रोक्सयूरिया, फेनिटाइन इंजेक्शन और गर्भावस्था जांच किट जैसे मामलों ने स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठाए हैं। इस स्थिति ने न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया है, बल्कि भ्रष्टाचार की आशंका को भी बल दिया है। मरीजों के हित में आपूर्ति प्रणाली को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
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