कुसमुंडा में भू-विस्थापितों का उग्र प्रदर्शन, SECL के खिलाफ फर्जी नौकरियों पर आक्रोश, पुतला दहन

कोरबा। कुसमुंडा परियोजना में फर्जी नौकरियों के कारण भू-विस्थापित परिवारों में दक्षिण पूर्वी कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) प्रबंधन के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा है। शुक्रवार को भू-विस्थापित रोजगार एकता महिला किसान संगठन के बैनर तले महिलाओं ने जीएम कार्यालय में अर्धनग्न प्रदर्शन कर अपनी मांगों को लेकर जोरदार विरोध जताया।

प्रदर्शनकारियों ने अधिकारियों से कहा, “आप चूड़ी पहन लो, हम यहां से चले जाएंगे,” जिससे उनकी नाराजगी साफ झलक रही थी।

शनिवार को आक्रोश और बढ़ गया, जब भू-विस्थापितों ने कुसमुंडा जीएम सचिन पाटिल और SECL के सीएमडी का पुतला कार्यालय गेट पर जलाया। पुतला दहन से पहले जुलूस निकाला गया, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने पुतले पर थूका, मुर्दाबाद के नारे लगाए और तस्वीरों को पैरों तले कुचला। प्रदर्शन के दौरान भू-विस्थापितों के चेहरों पर गुस्सा और प्रबंधन के रवैये से निराशा साफ दिखाई दी।

प्रदर्शनकारी फर्जी नौकरियों का आरोप लगा रहे हैं, जिसके तहत उनकी जमीनों के बदले दूसरों को नौकरी दी गई। उनका कहना है कि 1978 के दौर में, जब पुनर्वास नीति लागू नहीं थी, तत्कालीन कलेक्टर भू-अर्जन समिति और विधायकों की देखरेख में तीन एकड़ जमीन पर एक नौकरी का प्रावधान था। छोटी जमीन वालों को भी मैनपावर पूर्ति के लिए नौकरी देने की नीति थी।

हालांकि, राजस्व अधिकारियों और SECL के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से जमीनों को टुकड़ों में बांटकर फर्जी नौकरियां बांटी गईं। कई मामलों में, जिन परिवारों ने नौकरी नहीं चाही, उनके नाम पर सहमति लेकर दूसरों को नौकरी दे दी गई।


आज भी भू-विस्थापित परिवार रोजगार, मुआवजा, बसाहट और पुनर्वास की मांग कर रहे हैं, लेकिन प्रबंधन की नीतियां और कार्यशैली सवालों के घेरे में है। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि तत्कालीन अधिकारी अनुपम दास ने फर्जी नौकरियों में अहम भूमिका निभाई।

SECL प्रबंधन का कहना है कि नौकरियां सहमति और राज्य शासन के सत्यापन के आधार पर दी गई हैं। प्रबंधन ने प्रदर्शन को अनावश्यक बताते हुए कहा कि पुराने समझौतों को वर्तमान नियमों के तहत लागू करना संभव नहीं है।

प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे कोयला खदान का उत्पादन ठप करने जैसे कड़े कदम उठाएंगे। यह आंदोलन कोयला उद्योग में भू-विस्थापितों की समस्याओं पर गंभीर चर्चा की आवश्यकता को उजागर करता है।