ऐतिहासिक तिलकेजा प्राथमिक पाठशाला का विलोपन: छत्तीसगढ़ के युक्तियुक्तकरण नीति पर सवाल

कोरबा जिले की 115 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक प्राथमिक पाठशाला तिलकेजा, जो सन 1910 में स्थापित हुई थी, राज्य सरकार की युक्तियुक्तकरण नीति के तहत विलुप्त होने की कगार पर है। इस पाठशाला ने न केवल कोरबा बल्कि पूरे प्रदेश और देश को डिप्टी सीएम, गृहमंत्री, सांसद, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, शिक्षाविद और शासकीय सेवक जैसे कई प्रतिभाशाली व्यक्तित्व दिए हैं।

फिर भी, इसे तिलकेजा के कन्या आश्रम में मर्ज करने का निर्णय लिया गया है, जिससे इसकी ऐतिहासिक पहचान खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है।

तिलकेजा प्राथमिक पाठशाला की स्थापना उस दौर में हुई थी जब कोरबा में कोई अन्य प्राथमिक शाला नहीं थी। 1910 में स्थापित यह स्कूल उस समय के कटघोरा क्षेत्र की एकमात्र शासकीय प्राथमिक पाठशाला से भी पुराना है। इसने स्वर्गीय प्यारेलाल कंवर (पूर्व डिप्टी सीएम, अविभाजित मध्यप्रदेश), ननकीराम कंवर (पूर्व गृहमंत्री, छत्तीसगढ़), डॉ. बंशीलाल महतो (सांसद और “गरीबों का डॉक्टर”), और श्यामलाल कंवर (पूर्व पुलिस अधिकारी और विधायक) जैसे दिग्गजों को शिक्षा की नींव प्रदान की। इसके अलावा, इस स्कूल ने कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों और शासकीय अधिकारियों को भी गढ़ा।

छत्तीसगढ़ शासन ने प्रदेश भर में स्कूलों के युक्तियुक्तकरण का अभियान चलाया है, जिसके तहत कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को अन्य स्कूलों में मर्ज किया जा रहा है। कोरबा जिले में भी इस नीति के तहत तिलकेजा प्राथमिक पाठशाला को कन्या आश्रम में मर्ज करने का निर्णय लिया गया है। दोनों स्कूल एक ही परिसर में हैं, जिससे छात्र-छात्राओं को असुविधा नहीं होगी, लेकिन इस ऐतिहासिक स्कूल का नाम और पहचान हमेशा के लिए मिट जाएगी।

आश्चर्यजनक रूप से, राज्य सरकार ने युक्तियुक्तकरण नीति में ऐतिहासिक महत्व के स्कूलों को संरक्षित करने का स्पष्ट निर्देश दिया था। फिर भी, जिला शिक्षा विभाग ने इस निर्देश की अनदेखी करते हुए तिलकेजा प्राथमिक पाठशाला को मर्ज करने का फैसला लिया। इस लापरवाही ने युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने तिलकेजा प्राथमिक पाठशाला के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए एक पत्र जारी किया है, जिसमें उन्होंने इस स्कूल को बचाने की मांग की है। ग्रामवासियों ने भी इस मर्जर के खिलाफ आवाज उठाई है और मांग की है कि इस स्कूल को बंद न किया जाए।

यह देखना बाकी है कि जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग इस मामले में अपनी गलती सुधारता है या नहीं। तिलकेजा के इस ऐतिहासिक स्कूल का विलोपन न केवल कोरबा के लिए, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के लिए एक अपूरणीय क्षति होगी। इस मामले ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली और ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति उसकी संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल उठाए हैं।