कोरबा। जिले के रिसदी गांव के करीब 300 किसानों ने अपनी 260.53 एकड़ निजी भूमि, जो 1998 में देबू पावर इंडिया लिमिटेड के लिए अधिग्रहित की गई थी, वापस करने की मांग की है। भू-स्वामियों ने कलेक्टर जनदर्शन में ज्ञापन सौंपकर इस मामले में हस्तक्षेप की गुहार लगाई है। उनका कहना है कि 28 वर्ष बीत जाने के बाद भी अधिग्रहित भूमि पर कोई पावर संयंत्र स्थापित नहीं हुआ, जिसके चलते उनकी जमीन वापस की जाए।
ज्ञापन के अनुसार, 1998 में भू-अधिग्रहण अधिनियम 1894 के तहत 500 मेगावाट के पावर संयंत्र के लिए रिसदी गांव में 260.53 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई थी, जिसमें खसरा नंबर 1/7 से 333/2 (पी) शामिल हैं। अधिनियम के प्रावधानों के तहत, यदि अधिग्रहित भूमि का उपयोग 6 वर्षों के भीतर तय उद्देश्य के लिए नहीं होता, तो मुआवजे का एक चौथाई हिस्सा शासन को लौटाकर भूमि मूल भू-स्वामियों को वापस की जा सकती है। इसके अलावा, भू-अधिग्रहण अधिनियम 2013 की धारा-24 में भी स्पष्ट है कि यदि 5 वर्षों तक कार्य शुरू नहीं होता, तो नए अधिनियम के तहत मुआवजा देकर भूमि वापस की जानी चाहिए।
किसानों का कहना है कि मेसर्स देबू पावर इंडिया लिमिटेड ने 28 वर्षों में कोई संयंत्र स्थापित नहीं किया। कंपनी ने अधिग्रहण के समय लिखित इकरारनामा किया था कि भू-स्वामियों को पावर संयंत्र में योग्यतानुसार नौकरी दी जाएगी, लेकिन यह वादा भी पूरा नहीं हुआ। अब न तो कंपनी से संयंत्र स्थापित होने की उम्मीद है और न ही छत्तीसगढ़ शासन से इस भूमि पर कोई उद्योग लगने की संभावना दिख रही है। भू-स्वामियों ने इस अधिग्रहण को निरस्त कर अपनी जमीन वापस दिलाने की मांग की है, जो उनकी आजीविका का मुख्य साधन है।
किसानों ने बताया कि भू-अधिग्रहण अधिनियम 1894 के तहत पहले भी कई मामलों में न्यायालय ने अधिग्रहित भूमि मूल मालिकों को वापस करने का फैसला सुनाया है। उन्होंने शासन से मांग की है कि उनकी जमीन विधिवत रूप से वापस की जाए, ताकि वे अपनी आजीविका फिर से शुरू कर सकें। इस मामले में कलेक्टर जनदर्शन में सौंपी गई उनकी गुहार पर प्रशासन की ओर से कार्रवाई की उम्मीद जताई जा रही है।
Editor – Niraj Jaiswal
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