कोरबा। जिले के सबसे बड़े ग्राम पंचायत रजगामार में भ्रष्टाचार का मामला सुर्खियों में है, लेकिन प्रशासन की ओर से कथित लीपापोती ने सुशासन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्राम पंचायत के सचिव ईश्वर लाल धीरहे को 2 करोड़ 91 लाख 51 हजार 967 रुपये की वित्तीय अनियमितता के लिए बर्खास्त किया गया है, जबकि जिला प्रशासन की प्रेस विज्ञप्ति में वसूली राशि मात्र 72 लाख 5 हजार 139 रुपये बताई गई है। इस विरोधाभास ने यह सवाल उठाया है कि क्या जिला पंचायत सीईओ ने कलेक्टर से सच्चाई छिपाई है?
जिला जनसंपर्क अधिकारी की विज्ञप्ति के अनुसार, रजगामार पंचायत के पूर्व सरपंच रमूला राठिया और सचिव ईश्वर धीरहे पर भ्रष्टाचार की शिकायत मिली थी। जांच में 83,94,940 रुपये के कार्य बिना तकनीकी व प्रशासकीय स्वीकृति के किए गए पाए गए। कैशबुक और बिल-वाउचर भी संधारित नहीं थे।
इसके अलावा, 15वें वित्त आयोग योजना के तहत 72,05,139 रुपये की वसूली के लिए नोटिस जारी किया गया, जो एसडीएम कोरबा के न्यायालय में प्रक्रियाधीन है।
वहीं, 36,32,332 रुपये का समायोजन जिला खनिज न्यास की राशि से बताया गया।
हैरानी की बात यह है कि जिला पंचायत सीईओ द्वारा जारी बर्खास्तगी आदेश में सचिव द्वारा 2.91 करोड़ रुपये की अनियमितता का उल्लेख है। इसमें 15वें वित्त आयोग के तहत 1.24 करोड़ और 1.39 करोड़ रुपये के मनमाने ऑनलाइन भुगतान, बिना अभिलेख के 25.24 लाख का डी.एस.सी. भुगतान, और आयुर्वेदिक औषधालय के लिए 2 लाख रुपये के गबन का जिक्र है। रोकड़पंजी, मस्टर रोल, और वाउचर फाइलें भी उपलब्ध नहीं कराई गईं।
स्थानीय लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब बर्खास्तगी आदेश में करोड़ों की अनियमितता का उल्लेख है, तो वसूली राशि इतनी कम कैसे? क्या प्रशासन भ्रष्टाचारियों को बचाने की कोशिश कर रहा है?
भाजपा सरकार के सुशासन तिहार के दावों के बीच कोरबा में यह मामला प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर रहा है। जनता मांग कर रही है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
Editor – Niraj Jaiswal
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