हाइकोर्ट ने बेटी से दुष्कर्म के आरोपी पिता को किया बरी, दबाव में आकर पीड़िता ने लगाए थे आरोप

बिलासपुर हाइकोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी पिता को सबूतों के अभाव में बरी करने का आदेश दिया है। अदालत ने माना कि यह मामला झूठे आरोप का एक स्पष्ट उदाहरण है, जिसमें चिकित्सा और फोरेंसिक साक्ष्य अभियोजन पक्ष के दावों का समर्थन करने में विफल रहे। इसके अलावा, अदालत ने पाया कि पीड़िता के बयान में विश्वसनीयता की कमी है, जिससे यह अपराध अविश्वसनीय हो जाता है।

याचिका के अनुसार, पूरा मामला साल 2019 जांजगीर चांपा का है। जब पीड़िता अपने घर के पास रहने वाले एक युवक रितेश के साथ भाग गई थी। जिसके बाद पीड़िता के पिता ने युवक के खिलाफ थाने में दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसपर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने आरोपी रितेश को जेल में डाल दिया। इस घटना से रितेश की दादी और बाकी घर वाले बेहद नाराज थे। रितेश के जेल जाने की वजह से युवती वापस अपने घर आकर रहने लगी।

इस बीच साल 2022 में एक दिन जब पीड़िता ने घर पर खाना बनाया तो उसके पिता जोकि शराब के नशे में था, उसे खाना पसंद नहीं आने पर अपनी बेटी की पिटाई कर दी।

इसके बाद पीड़िता घर से बाहर निकली। जहां रितेश की दादी भी मौजूद थी। उन्होंने पीड़िता को धमकी दी कि अगर उसने अपने पिता के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिखवाई तो उसका अंजाम बहुत बुरा होगा। दबाव में पीड़िता ने रितेश की दादी द्वारा थाने में लिखवाई गई रिपोर्ट पर अंगूठा लगा दिया (पीड़िता के अनपढ़ होने की वजह से)।

इस मामले में पुलिस ने पीड़िता के बयान के आधार पर उसके पिता के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में निचली अदालत ने सुनवाई करते हुए पिता को 10 साल कैद की सजा सुना दी।

बताया जाता है कि मेडिकल जांच में दुष्कर्म की किसी भी तरह से पुष्टि नहीं हुई थी। पीड़िता ने निचली अदालत में दबाव पूर्वक बयान दर्ज करवाने की बात कोर्ट में भी कही थी लेकिन निचली अदालत ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

निचली अदालत द्वारा सुनाए गए इस फैसले के खिलाफ पिता ने हाईकोर्ट में अपील की। जिसपर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय के.अग्रवाल की सिंगल बेंच ने यह फैसला सुनाया है। गौरतलब है कि, निचली अदालत के गलत फैसले की वजह से पिता को 2 साल से अधिक समय जेल में बिताने पड़े। हाइकोर्ट ने पिता को तत्काल रिहा करने का आदेश जारी किया है।