जिले का दुर्गम गांव जहां वर्षों से है स्कूल, बिजली, पानी, सडक़ की दरकार
कोरबा-चोटिया। कोरबा जिले के अंतिम छोर एवं पाली-तानाखार विधानसभा क्षेत्र के पोड़ी उपरोड़ा ब्लाक अंतर्गत दुर्गम पहाड़ी हसदेव बांगो डुबान क्षेत्र के चारों ओर से घिरे ग्राम पंचायत साखो का आश्रित गांव रनई पहाड़ भले ही काफी ऊंचा हो, लेकिन वहां के लोगों के हौसलों से ज्यादा ऊंचा नहीं है। आज के समय में इन सभी के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है कि सरकारी स्कूल नहीं होने के बावजूद ‘रनई पहाड़’ का एक भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं है।
‘रनई पहाड़’ जैसे देश के और कई आदिवासी गांव हैं जहां के बच्चों को इस तरह के स्ट्रक्चर की ज़रुरत है, जहां पर वे बिना किसी भय या अभाव के अपने सपनों को बुन सकें और एक सशक्त व सजग नागरिक की तरह अपनी सामाजिक जि़म्मेदारी का निर्वाह कर सकें।
रनई पहाड़ के लोग आधी लड़ाई जीत चुके हैं जिसमें बच्चों की शिक्षा और मध्यान्ह भोजन जैसी कई सुविधाएं शामिल हैं, बाकी सरकारी स्कूल और सरकारी अध्यापक को अपने गांव में लाने की वर्षों की लड़ाई अभी भी जारी है।
मदनपुर के जनपद सदस्य बजरंग सिंह पैकरा ने बताया कि पिछले डेढ़ वर्षों से गिद्धमुड़ी ग्राम पंचायत के आश्रित गांव खोटखोरी में कांग्रेस शासनकाल में शिक्षा मंत्री रहे डॉ.प्रेमसाय टेकाम को दिनांक 24/12/2021 को अपने लेटर पैड में नवीन प्राथमिक शाला खोलने की मांग रखी थी, जहां वर्तमान में 49 बच्चे 5 किलोमीटर दूर जंगल के रास्तों से सफर कर ठिरीआमा पढऩे जा रहे थे। उन्होंने यह भी बताया कि खोटखोरी गांव के निवासी मिनीमाता बांगो डेम परियोजना से भू विस्थापित लोग हैं, जहां शासकीय पुनर्वास नीति के तहत मुलभूत सुविधा शिक्षा जैसे शासकीय विद्यालय आदि अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराने की मांग रखी गई थी लेकिन हुआ कुछ नहीं।
पिछले डेढ़ वर्षों से बजरंग सिंह पैकरा शिक्षा, स्कूल, सडक़, बिजली, पानी के लिए लगातार जिला प्रशासन से गुहार लगाते आ रहे हैं, जनप्रतिनिधि के नाते उनके द्वारा हर संभव प्रयास कर कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी, जनपद पंचायत पोड़ी उपरोड़ा के प्रत्येक सप्ताहिक बैठकों में इस गंभीर समस्या को लगातार उठाया जाता रहा है।
मिसाल है नीरा बाई की काबिलियत
गांव के पास अभी भी कोई सरकारी स्कूल नहीं है लेकिन एस्पायर और द हंस फाउंडेशन की मदद से उनके पास एक ऐसा ढांचा है जिसे ‘रनई पहाड़ का एनआरबीसी सेंटर’ कहा जाता है।
इस सेंटर के पास मध्यान्ह भोजन से लेकर ड्रेस, किताबें-कापियां, बच्चों के लिए किताबों की छोटी सी लाइब्रेरी और खाना बनाने के लिए एक दीदी भी हैं, जो बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन बनाती हैं। एनआरबीसी स्टूडेंट ‘राधा’ की मां ‘नीरा बाई’ कहती हैं कि, ‘हमने कभी नहीं सोचा था कि इस जंगल में, घंटों पहाड़ी चढ़ कर, कोई ऐसी संस्था आएगी जो बच्चों को पढ़ाएगी और नई दुनिया के बारे में बताएगी।
Editor – Niraj Jaiswal
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