कोरबा : बॉलीवुड की मशहूर फिल्म 3 इडियट में आपने वैक्यूम क्लीनर से डिलीवरी का सीन जरूर देखा होगा. डिलीवरी के बाद बच्चा रोता नहीं है, तो उसे अभिनेता आमिर खान सीने से लगाकर ‘ऑल इज वेल’ की थपकी देते हैं और बच्चा रोने लग जाता है. कुछ इसी तर्ज पर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भी जन्म के बाद नहीं रोने वाले बच्चों को डॉक्टर ऑल इज वेल की थपकी देंगे. इसके लिए अस्पताल में लाखों रुपए कीमती दो नई अत्याधुनिक मशीनें आ चुकी हैं. कई बार देखा जाता है कि जन्म होने के बाद ही बच्चों को झटके आना शुरू हो जाता है ऐसे में परिजन घबरा जाते हैं अब उन्हें फिक्र करने की जरूरत नहीं. कोरबा जिले के मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों की टीम ने नवीन पद्धति से उपचार भी शुरू कर दिया है. जहां निजी अस्पताल में लाखों खर्च करने के बजाय निशुल्क यहां बच्चों का उपचार हो पाएगा.
डॉक्टरों को धरती का भगवान यूं ही नहीं कहा जाता. उनके हाथ पर बहुत कुछ निर्भर होता है, बशर्ते पर्याप्त सुविधा व संसाधन उपलब्ध हो. इन संसाधनों का सही समय पर इस्तेमाल किया जा सके. इसका जीता जागता उदाहरण मेडिकल कॉलेज अस्पताल की घटना से लिया जा सकता है. दरअसल, उरगा क्षेत्र में राजेश चंद्राकर निवास करते हैं. एक मई को उनकी पत्नी दीप्ति चंद्राकर को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई. श्री चंद्राकर अपनी पत्नी को प्रसव के लिए मेडिकल कॉलेज अस्पताल लेकर पहुंचे. ड्यूटी में तैनात स्वास्थ्य कर्मियों ने प्रसूता का सामान्य प्रसव तो करा लिया, लेकिन जन्म के पांच मिनट बाद भी मासूम के मुंह से आवाज नहीं निकली. जिससे घबराए स्वास्थ्य कर्मी मासूम को तत्काल एसएनसीयू (नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई) लेकर पहुंचे, जहां मेडिकल कॉलेज में शिशु रोग विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. हेमा नामदेव मौजूद थी. उन्होंने मासूम को एसएनसीयू में भर्ती करते हुए गहनता से जांच की. तत्पश्चात एचओडी डॉ. राकेश वर्मा, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. धर्मवीर सिंह और अपनी टीम के साथ मासूम का नवीन पद्धति से उपचार शुरू कर दिया. मासूम के उपचार के लिए लाखों रुपए कीमती अत्याधुनिक उपकरण का इस्तेमाल किया गया. डॉक्टरों की लगातार प्रयास और नवीन पद्धति से उपचार के कारण मासूम के रोने की गूंज अस्पताल में सुनाई दी. एसएनसीयू में मासूम का उपचार डॉक्टरों के देखरेख में करीब 13 दिनों तक चलता रहा, जिससे वह पूरी तरह स्वस्थ है. इस खबर से परिजनों में खुशी का ठिकाना नहीं है.
लोगों को भारी भरकम खर्च से मिलेगी राहत
मेडिकल कॉलेज सहायक प्राध्यापक डॉ. हेमा नामदेव ने बताया कि अस्पताल में नवीन पद्धति से नवजात का उपचार किया गया. जिससे निश्चित तौर पर परिजनों को भारी भरकम खर्च से राहत मिलेगी. जिले के चुनिंदा अस्पताल हैं, जहां यह सुविधा उपलब्ध है. यदि खर्च की बात करें तो प्रतिदिन औसतन छह हजार रुपए होते हैं, जबकि मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोई खर्च नहीं है. मेडिकल कॉलेज में शिशु रोग विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉक्टर हेमा नामदेव ने बताया कि अस्पताल में नवीन पद्धति से पहली बार उपचार किया गया है इसके लिए लाखों रुपए कीमती दो अत्याधुनिक मशीन उपलब्ध हैं जिसे मीरा कादल कहा जाता है इस उपकरण की मदद से कंट्रोल तरीके से बच्चे को ठंडा किया जाता है जिसकी वजह से मस्तिष्क का मेटाबॉलिज्म कम हो जाता है और बच्चे पर आघात कम होता है.
Editor – Niraj Jaiswal
Mobile – 9754876042
Email – urjadhaninewskorba@gmail.com
Address – Press Complex, T.P. Nagar, Korba C.G. 495677