केवल तीन स्कूलों में चल रहा कृषि संकाय विषय, नौ में बंद

कोरबा। जिले के हायर सेकेंडरी स्कूलों में कला, वाणिज्य व विज्ञान संकाय तो हैं लेकिन कृृषि संकाय सिमटने लगा है। खेती को व्यवसायिक रूप देने के उद्देश्य से सात साल पहले जिले के 12 स्कूलों में संकाय की शुरूआत की गई थी। विषयवार शिक्षकों की नियुक्ति नहीं किए जाने से बच्चों ने दाखिला लेना छोड़ दिया।
अब केवल पाली, करतला और रामपुर में ही इसका संचालन हो रहा है। विषय में रूचि रखने वाले दीगर विकासखंड के विद्यार्थियों को मजबूरी में अन्य विषय चयन करना पड़ रहा। माध्यमिक शिक्षा मंडल ने बोर्ड कक्षाओं का परीक्षा परिणाम जारी दिया है। दसवीं उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थी अब ग्यारहवीं की पढ़ाई के लिए विषय चयन की जुगत में जुड़ गए हैं। कला, विज्ञान व वाणिज्य विषय के लिए अधिकांश स्कूलों में विकल्प देखे जा रहे हैं।

ऐसे मे कृषि विषय लेकर आगे की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं में निराशा देखी जा रही है। पांच साल पहले जिले के कृषि क्षेत्र वाले चुनिंदा स्कूलों में संकाय को शुरू किया गया था, जिसमे भैसमा, छुरी, चैतमा, कटघोरा आदि शामिल थे। बेहतर भविष्य क संभावना को लेकर खासी संख्या में विद्यार्थियों ने दाखिला भी लिया था।
संकाय खोलने के बाद जिस तादाद में छात्र-छात्राओं दाखिला लिया उन्हे बाद में निराशा का सामना करना पड़ा। शासन ने संकाय की स्वीकृति तो दे दी लेकिन अध्यापन के लिए शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की। संकाय की पढ़ाई को कला और विज्ञान विषय के शिक्षकों के भरोसे कराई जा रही थी। परिणाम बेहतर नहीं आने कारण स्कूलों ने संकाय का संचालन बंद कर दिया।

बताना होगा कि पूर्व ने कांग्रेस की सरकार ने खेती को बढ़ावा देने के लिए नरवा, गरूवा, घुरूवा, बारी योजना शुरू की थी। गोठान जैसी महत्वपूर्ण योजना को खेती किसानी से जोड़ा जा रहा था। इससे अनुमान लगाया जा रहा था कि स्कूलों में कृषि संकाय को बढ़ावा मिलेगी पर ऐसा नहीं हो सका। कुछ निजी स्कूलों ने शिक्षा के व्यवसायीकरण को बढ़ावा देने के कृषि संकाय तो शुरू कर दी है लेकिन वहां भी विषय के जानकार शिक्षक नहीं हैं।

कृषि संकाय की पढ़ाई के लिए विद्यार्थियाें को शहर के निजी संस्थानों की ओर रूख करना पड़ रहा है। स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए कृषि बेहतर विकल्प हो सकता है। इस विषय से न केवल खेती बल्कि कुक्कुट, मत्स्य पालन, डेयरी उद्योग के अलावा फल व सब्जी की खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है। विद्यार्थी विषय के प्रति रूचि भी ले रहे लेकिन निकटवर्ती स्कूलों कृषि संकाय नहीं होने की वजह से उन्हे मजबूरी में अन्य विषय चुनना पड़ता है।

359 विद्यार्थियों में 35 अनुत्तीर्ण व 22 पूरक कृषि संकाय में इस वर्ष बारहवीं की परीक्षा में 359 विद्यार्थी शामिल हुए। इनमें 35 अनुत्तीर्ण और 22 पूरक की श्रेणी में हैं। कला, विज्ञान व वाणिज्य की तुलना में उत्तीर्ण प्रतिशत 84.03 रहा। जिन स्कूलों में संकाय चल रहा है, वहां कृषि के बजाए विज्ञान और कला के शिक्षक पढ़ाई करा रहे हैं। विषय शिक्षक के अभाव में खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है।

बीते वर्ष कृषि संकाय में 652 विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया था। साल भर में ही विद्यार्थियों की संख्या 50 प्रतिशत कम हो गई है। शिक्षकों की व्यवस्था के साथ अन्य स्कूलों में महत्वपूर्ण कृषि संकाय की शुरूआत नहीं की गई तो कृषि संकाय जिले के स्कूलों में समाप्त हो जाएगा। प्रदर्शन के लिए उपलब्ध नहीं कृषि भूमि कृषि संकाय के विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ प्रायोगिक तौर पर खेती की विधि भी सिखाने का प्रविधान है। इसके लिए स्कूल परिसर या आसपास में कृषि भूमि होना जरूरी है। जिन स्कूलों संकाय शुरू की गई थी वहां बंद होने का एक कारण जमीन की अनुपलब्धता है।

संकाय संचालन के लिए प्राचार्य शासन से मांग कर सकते हैं, संसाधन के अभाव के कारण उनमे निष्क्रियता देखी जा रही। जिन स्कूलों में विषय की पढ़ाई हो रही है, वहां जमीन तो उपलब्ध हैं लेकिन विषय शिक्षक के अभाव में परीक्षा परिणाम भी कमजोर हैं। आत्मानंद स्कूलों में भी नहीं मिली कृषि संकाय को जगह जिले में अब तक 53 आत्मानंद विद्यालय की शुरूआत की जा चुकी है। विद्यालय के अस्तित्व में आने के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि यहां कृषि संकाय शुरू की जाएगी लेकिन एक भी स्कूल में भी शुरू नहीं हुई है।

भवन और संसाधन की कमी से जूझ रहे स्कूलों का परीक्षा परिणाम भी संतोष जनक नहीं रहा है। विद्यार्थियों की समस्या अब भी यथावत है। लाटरी सिस्टम से हो आज होगा चयन शिक्षा के अधिकार के तहत आत्मानंद स्कूलों में विद्यार्थियों की प्रवेश की प्रक्रिया लाटरी के माध्यम से बुधवार को किया जाएगा। जिले में अंग्रेजी माध्यम के 12 व हिंदी माध्यम 41 आत्मानंद स्कूल संचालित है।