कोरबा। छत्तीसगढ़ की ऊर्जाधानी कोरबा, जहां प्रतिमाह 7000 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और 400 करोड़ रुपये का डीएमएफ फंड विकास के लिए उपलब्ध है, वहां कई मजरा-टोले आज भी बिजली जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आयोजित सुशासन तिहार के दौरान विशेष पिछड़ी जनजाति पहाड़ी कोरवा और अन्य जनजातियों के ग्रामीणों ने आवेदन देकर अपनी समस्या उजागर की। बिजली विभाग के पिछले सर्वे में जिले के 124 मजरा-टोलों को चिन्हित किया गया, जहां अब तक बिजली नहीं पहुंची है।
कोरबा के लेमरू और कटघोरा से आगे के क्षेत्र घने जंगलों और वनांचल से घिरे हैं, जो विद्युतीकरण के लिए बड़ी चुनौती पेश करते हैं। कई गांव हाथी प्रभावित क्षेत्रों में स्थित हैं, जहां हाथियों के विचरण के कारण बिजली लाइन बिछाने और रखरखाव में दिक्कतें आती हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इन क्षेत्रों में काम करना जोखिम भरा है। फिर भी, केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के तहत, जहां 20 परिवार भी निवास करते हैं, वहां बिजली पहुंचाने का प्रावधान है, खासकर विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए।
राज्य और केंद्र सरकार की कई योजनाएं छोटी आबादी वाले दुर्गम गांवों तक बिजली पहुंचाने के लिए संचालित हैं। इसके बावजूद, कोरबा में 9 से 10 पावर प्लांट होने और भारी मात्रा में बिजली उत्पादन के बावजूद, कई मजरा-टोले अंधेरे में हैं। कोरबा जिला प्रशासन ने इन गांवों को डीएमएफ (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन) फंड से विद्युतीकृत करने की योजना बनाई है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि सभी 124 मजरा-टोले इस फंड से रोशन हो पाएंगे या नहीं। बिजली विभाग ने सरकार को इन गांवों की स्थिति से अवगत करा दिया है।
यह विडंबना है कि जिस जिले को ऊर्जाधानी के रूप में जाना जाता है, वहां के कई गांव बिजली से वंचित हैं। सोशल मीडिया के इस युग में भी ग्रामीण अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। स्थानीय लोग और जनजातीय समुदाय प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि इन क्षेत्रों में जल्द से जल्द बिजली पहुंचाई जाए। जिला प्रशासन और बिजली विभाग को इन दुर्गम क्षेत्रों में विद्युतीकरण के लिए विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि सभी गांव रोशनी से जगमगा सकें।
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