कोरबा जिले के जंगलों में लंबे समय से ‘जंगलराज’ और ‘वसूली राज’ का बोलबाला है। कटघोरा वन मंडल के पोड़ी-उपरोड़ा ब्लॉक के ग्राम पंचायत परला के कापा नवापारा में एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां वन कर्मचारियों ने ग्रामीणों की मजबूरी का फायदा उठाकर कथित तौर पर वसूली की।
पिछले साल बरसात में हाथियों ने ग्रामीण गुड्डू साहू के खेत को तहस-नहस कर दिया था। फसल नुकसान का मुआवजा तो मिला, लेकिन खेत के टूटे पार (मेड़) की मरम्मत के लिए वन विभाग ने कोई मदद नहीं की। इस साल बरसात से पहले गुड्डू ने अपने खेत की मरम्मत के लिए पिंटू साहू को काम सौंपा, जिन्होंने दो ट्रैक्टरों से काम शुरू कराया। इस दौरान पास की वन भूमि से 3-4 ट्रैक्टर मिट्टी ली गई।
इसी बीच, एक बीट गार्ड ने मौके पर पहुंचकर ट्रैक्टर चालकों को वन भूमि से मिट्टी लेने के आरोप में फटकार लगाई और कार्रवाई की धमकी दी। बाद में वन कर्मियों ने ट्रैक्टरों को कब्जे में ले लिया और 50,000 रुपये की मांग की, जो बाद में 25,000 रुपये में तय हुई। ट्रैक्टर चालकों ने 20,000 रुपये नगद और 5,000 रुपये फोन-पे के जरिए दिए, लेकिन कोई रसीद या चालान नहीं दिया गया। इस घटना के बाद ट्रैक्टर चालक काम छोड़कर चले गए, और गुड्डू का खेत अधूरा पड़ा है।
स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि कुछ रेंजर और बीट गार्ड मिलकर एक ‘वसूली सिंडिकेट’ चला रहे हैं। जंगल से लकड़ी लाने वाले ग्रामीणों को भी बेवजह रोककर पैसे वसूले जाते हैं, बिना रसीद दिए। गंभीर बात यह है कि जंगल क्षेत्र में रेत, मिट्टी और इमारती लकड़ियों की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है, लेकिन प्रभावशाली लोगों पर कार्रवाई नहीं होती, जबकि साधारण ग्रामीणों को निशाना बनाया जाता है।
ग्रामीणों का कहना है कि उच्च अधिकारियों को इसकी जानकारी होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की जाती। इस मामले में वन विभाग के उच्च अधिकारियों से जवाब की उम्मीद है, ताकि ग्रामीणों को इस ‘वसूली राज’ से निजात मिल सके।
Editor – Niraj Jaiswal
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