कोरबा के उस पवित्र स्थान के प्रति लोगों के मन में अटूट श्रद्धा व विश्वास है, वहां प्रभु की आराधना के साथ ऐसी गतिविधियां भी समय-समय पर आयोजित होती है, जो लोगों के मन में भक्ति भाव पैदा करती है. धार्मिक आयोजन के माध्यम से लोगों में एकता का सूत्रपात होता है,हम बात कर रहें हैं शहर के नगर निगम आवासीय परिषर कोरबा छत्तीसगढ़ में स्थित श्री श्री 108 श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर की जहाँ पहुंचते ही शहरवासियों को अदभुत शांति का एहसास होता है।
सन् 1984 में महाशिवरात्रि के दिन शिव लिंग और बजरंग बली की मूर्ति विराजित की गई. उस समय साडा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी अमरजीत सिंह गहरवार की सोच को मूर्त रूप देने में श्री आर. पी. तिवारी, श्री अशोक शर्मा जी एवं साडा के अन्य अधिकारियों ने विशेष योगदान दिया. शहर के प्रबुद्ध जनों ने भी मंदिर निर्माण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया अभी भी सभी आयोजनों में भक्तों का विशेष योगदान होता है।
मंदिर के पूर्व पुजारी श्री प्रहलाद पुरी गोस्वामी ने बताया कि प्रारंभ में साडा कालोनी के आसपास कोई मंदिर नहीं था, लोगों को सीतामढ़ी पूजा अर्चना करने जाना पड़ता था. तब लोगों ने सामूहिक रूप से यहां मंदिर बनाने की योजना बनाई. उन्हें यहाँ पूजा करते एवं सेवा प्रदान करते 35 वर्ष हो चुके हैं, शुरुवाती दौर में यह क्षेत्र अविकसित था. उस समय एमआईजी और ईजीएस को मिलाकर मात्र पचास घर होते थे।
अब तो महाराणा प्रताप नगर, राजेन्द्र प्रसाद नगर, शिवाजी नगर, रविशंकर नगर,विद्युत मंडल कालोनी एवं आसपास के आवासीय परिसर में हजारों घर बन गये हैं. महाशिवरात्रि, नवरात्रि , रामनवमी, हनुमान जी के जन्मदिन, जन्माष्टमी, अक्षय तृतीया एवं अन्य अवसरों में यहां विशेष आयोजन होता है. जब से मंदिर का निमार्ण हुवा है तब से सभी नवरात्रि, शारदीय नवरात्रि, चैत्र नवरात्रि और गुप्त नवरात्रि में ज्योति कलश प्रज्वलित किया जाता है,कार्तिक मास के आंवला नवमी में शहरी क्षेत्र के काफी लोग यहां के आंवला पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना एवं भोजन करने आते हैं।
यहाँ विशेष अवसरों में हजारों की भीड़ रहती है. हर शनिवार को मंदिर के वर्तमान पुजारी श्री नागेश्वर पुरी गोस्वामी एवं आशुतोष पुरी गोस्वामी एक मास परायण रामायण पाठ करते हैं।
श्यामा श्याम सत्संग के सदस्य हर रविवार और विशेष अवसरों पर यहाँ भजन करतें हैं एवं महिला मण्डली द्वारा हर सोमवार को शाम पाँच बजे से भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता है. महाशिवरात्रि के दिन से पांच दिवसीय लघु रूद्र यज्ञ शुरू होता है।
इस बार यह मंदिर का 42 वा लघु रूद्र यज्ञ होगा जिसमें कलश यात्रा, ज्योति प्रज्ज्वलन, हवन, अंतिम दिन अर्थात महाशिवरात्रि की रात्रि के चौथे पहर में विशेष रूद्राभिषेक होता है. लोग अपनी श्रद्धा के अनुरूप पूजा अर्चना करते हैं और प्रभु के चरणों में माथा टेककर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।
कैसे हुआ मंदिर का नामकरण ?
पूर्व में मंदिर को शिव मंदिर कहा जाता था. बाद में महामृत्युंजय मंदिर कहा जाने लगा. मंदिर के पूर्व पुजारी श्री प्रहलाद पुरी गोस्वामी जी ने बताया कि मंदिर बनाने के बाद जब विद्युतीकरण का कार्य कराया जा रहा था तब बिजली के करेंट से लाईनमैन अचेत अवस्था में आ गया था. बाद में पूजा अर्चना की गई और उसे पानी पिलाया गया तो वह सकुशल बच गया. इसे भगवान का चमत्कार मानकर मंदिर का नामकरण महामृत्युंजय मंदिर किया गया. विश्वास होने पर यह चमत्कार अभी भी होते रहतें हैं l मंदिर में प्रतिदिन सुबह 8 से 9 बजे एवं शाम 7:30 से 8:30 बजे तक आरती होती है.
Editor – Niraj Jaiswal
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