एनटीपीसी सीपत में 800 मेगावाट इकाई स्थापना को मिली पर्यावरणीय मंजूरी

कोरबा : नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन (एनटीपीसी) के सीपत संयंत्र में एडवांस्ड अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल टेक्नालजी डेमोनेस्ट्रेशन (एयूएससीटीडीपी) इकाई लगाने के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। एड्वांस्ड अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल टेक्नालजी से विकसित किए जाने वाला यह देश ही नहीं बल्कि विश्व का पहला पावर प्लांट होगा। एनटीपीसी सीपत की वर्तमान क्षमता 2980 मेगावाट है। तीसरे चरण के तहत 800 मेगावाट की इकाई के प्रचालन में आ जाने के बाद क्षमता बढ़कर 3780 मेगावाट हो जाएगी।

एनटीपीसी ने एयूएससीटीडीपी के पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए लोक सुनवाई आयोजित की थी। उसके बाद पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने छह अगस्त 2024 को पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान की गई। 800 मेगावाट वाले नए संयंत्र की प्रारंभिक लागत 10 हजार 500 करोड़ रुपये है। पर्यावरण संरक्षण के लिए 957.32 करोड़ रुपये का प्रविधान किया जाएगा।

एड्वांस्ड अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल बायलर पैरामीटर के आधार पर पल्वराइज्ड कोल फायर्ड थर्मल पॉवर परियोजना होगी। यह विद्युत संयंत्र एनटीपीसी लिमिटेड और भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) का संयुक्त उद्यम स्थापित करेगा। यहां बताना होगा कि एयूएससीटीडीपी तकनीक को इंदिरा गांधी सेंटर फार एटामिक रिसर्च, भेल और एनटीपीसी के संयुक्त अनुसंधान एवं विकास प्रयासों से स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है।


कम होगा कार्बन- डाइ- आक्साइड उत्सर्जन

वर्तमान में भारत के थर्मल पावर प्लांट 32 प्रतिशत की औसत दक्षता पर काम करते हैं। एयूएससी तकनीक का उपयोग करके इस आंकड़े को 46 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। ऐसी उच्च दक्षता वर्तमान पावर प्लांट तकनीक में उपयोग किए जाने वाले 540-600 डिग्री सेल्सियस के बजाय 710-720 डिग्री सेल्सियस के उच्च भाप तापमान द्वारा प्राप्त की जाती है।

अधिक दक्षता का मतलब है कि पावर प्लांट को प्रति मेगावाट-घंटे कम कोयले की आवश्यकता होती है, इससे उत्सर्जन कम होता है। बीएचईएल के अनुसार, एयूएससी तकनीक सब- क्रिटिकल तकनीक की तुलना में कार्बन- डाइ- आक्साइड उत्सर्जन में 10- 15 प्रतिशत की कमी प्रदान करती है। वर्तमान में, भारत में कुल 72 सुपरक्रिटिकल और 20 अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल थर्मल पावर यूनिट हैं।