कोरबा। सरकारी जांच और उसके नतीजे हमेशा से ही सवालों के घेरे में रहे हैं। कोरबा तहसील क्षेत्र के अंतर्गत पंडरीपानी में नगर निगम के दो कर्मचारियों के द्वारा सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर बेजा उपयोग का मामला जांच में प्रमाणित तो हुआ लेकिन अगली कार्रवाई नहीं की गई। अब प्रशासन कह रहा है कि फाइल देखनी पड़ेगी।
कोरबा का पंडरीपानी क्षेत्र नायब तहसीलदार के कार्यक्षेत्र में शामिल है, जहां पर राजस्व और वन विभाग की लगभग 5 एकड़ जमीन बट्टे खाते में चली गई। जानकारी मिली कि नगर निगम कोरबा के कर्मचारी महेंद्र पटेल और फिरतराम पटेल ने यहां के ही निवासी हैं और उन्होंने इसका बेजा फायदा लेते हुए सरकारी जमीन का बड़ा हिस्सा दबा लिया। गलत तरीके से यहां फ्लाई ऐश ब्रिक्स प्लांट डाल दिया। दो एकड़ में खेती शुरू कर दी।
मामला जनकारी में आने पर एक वर्ष पहले राजस्व और वन विभाग की संयुक्त टीम ने यहां पहुंचकर जांच-पड़ताल की। इसमें कुल मिलाकर यह बात स्पष्ट हुई कि संबंधित व्यक्तियों ने दो विभाग की जमीन दबाई है और उस पर अवैध रूप से काम किया जा रहा है।
इससे ठीक पहले मौके पर लगे अनेक वृक्षों को समाप्त कर दिया गया तब से इस मामले में विवाद खड़ा हुआ और यहां-वहां शिकायत हुई। पिछले वर्ष कलेक्टर के जनदर्शन में शिकायत के बाद जांच के आदेश हुए और इस पर परीक्षण कराया गया। हैरानी की बात यह है कि जांच के तथ्य साफ होने पर भी किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हो सकी।
लंबे समय तक सुनवाई
खबर के मुताबिक पूर्व कलेक्टर संजीव झा के द्वारा मामले में जांच के आदेश तत्कालीन तहसीलदार को दिए गए थे। उन्होंने दूसरे सर्किल के राजस्व निरीक्षक और एक हल्के के पटवारी को जांच में लगाया। नोटिस देकर अनावेदक को एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के कोर्ट में पेश होने को कहा गया। कई बार के चक्कर के बाद जांच हुई। वन विभाग की ओर से डीएफओ ने पूर्व रेंजर सियाराम कर्माकर को जांच का जिम्मा सौंपा था। दोनों में साफ हुआ कि अनावेदक के क्रियाकलाप सरकारी जमीन पर हैं। सब कुछ होने के बाद अगले परिणाम क्यों नहीं आए, यह समझ से परे है।
Editor – Niraj Jaiswal
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