बिलासपुर। अरपा नदी, जिसे शहर का जीवनदायनी कहा जाता है, बीते दो दशक से प्रदूषण की चपेट में आकर अपनी शुद्धता खो चुकी है। यह नदी कभी स्वच्छ जल की प्रमुख स्रोत थी, लेकिन अब इसमें शहर का गंदा पानी, मेडिकल कचरा और अन्य घरेलू कचरा डालने से इसकी स्थिति दयनीय हो गई है। नतीजतन, यह पानी अब पीने योग्य नहीं रहा और गर्मी के मौसम में नदी पूरी तरह सूख जाती है।
अरपा नदी का प्रदूषण न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि इसके आस-पास के लोगों के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। नदी में गिरने वाले गंदे पानी और कचरे से जलजीवों का जीवन संकट में है और आसपास की खेती पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इससे न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है, बल्कि जनता के स्वास्थ्य पर भी गंभीर खतरे मंडरा रहे हैं।
इस संकट से निपटने के लिए जल संरक्षण बेहद आवश्यक है। जल संरक्षण का अर्थ केवल पानी बचाना ही नहीं, बल्कि उसके स्रोतों को संरक्षित और पुनर्जीवित करना भी है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
लोगों को जल संरक्षण और नदी प्रदूषण के खतरों के बारे में जागरूक करना जरूरी है। स्कूलों, कॉलेजों, और समाजिक संस्थाओं के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं। घरेलू और मेडिकल कचरे को नदी में डालने से रोकने के लिए कड़े नियम और उनके सख्त पालन की आवश्यकता है। इसके अलावा, शहर के कचरा प्रबंधन प्रणाली को सुधारना होगा ताकि कचरा सही तरीके से निपटान किया जा सके।
अरपा नदी के पुनर्निर्माण और पुनर्जीवन के लिए वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग किया जा सकता है। इसमें नदी की सफाई, तटबंधों का निर्माण, और जल प्रवाह को बनाए रखने के लिए जलाशयों का निर्माण शामिल है। अगल-बगल पौधारोपण। बारिश के पानी का संचयन और भूजल रिचार्जिंग के तरीकों को अपनाया जाना चाहिए। इससे जल की मांग को कम किया जा सकता है और नदी पर दबाव कम होगा। जल संरक्षण के इन प्रयासों से अरपा नदी को पुनर्जीवित किया जा सकता है, जिससे यह फिर से जीवनदायनी बन सके।
Editor – Niraj Jaiswal
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