कैम्पा पौधारोपण घोटाले में 45.32 लाख की वसूली का आदेश, रिटायर्ड SDO से लेकर वनरक्षक तक शामिल

कोरबा जिले में वन विभाग के कैम्पा मद से कराए गए पौधारोपण कार्य में बड़े पैमाने पर धांधली का खुलासा हुआ है। जुलाई 2024 में सत्यसंवाद द्वारा इस घोटाले को सबसे पहले उजागर किया गया था, जिसके बाद यह मामला लगातार सुर्खियों में रहा। जांच के बाद अब वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों से 45.32 लाख रुपये की वसूली की अनुशंसा की गई है।

जांच में सामने आई गंभीर अनियमितताएँ

पसान रेंज के जल्के बीट में पिपरिया पंचायत के तहत वर्ष 2019-20 में कैम्पा मद से 10 करोड़ रुपये की स्वीकृति के साथ 265 हेक्टेयर में सिंचित पौधारोपण का कार्य शुरू हुआ था। इस योजना के तहत 10 साल तक पौधों की सुरक्षा और देखरेख की जानी थी। लेकिन जांच में पाया गया कि लचरीडाड़ खलपारा के पार्ट-1 में 150 हेक्टेयर का दावा किया गया, जबकि वास्तविक रकबा उससे कम था। भाटापारा के पार्ट-2 में भी अतिक्रमित जमीन को पौधारोपण स्थल में शामिल किया गया। मौके पर मात्र 20-30% पौधे ही जीवित पाए गए।

पौधों की स्थिति और घोटाले का खुलासा

वर्ष 2020-21 में 150 हेक्टेयर और 115 हेक्टेयर क्षेत्र में आंवला, जामुन, नीम, करंज, सागौन, सीरत, सरई, कौहा, महुआ बीजा जैसे फलदार, छायादार और ईमारती पौधों का रोपण किया गया। लेकिन मैदानी अमले की लापरवाही के कारण 150 हेक्टेयर में मात्र 20-30% और 115 हेक्टेयर में 20-25% पौधे ही जीवित बचे। फेंसिंग के खंभे और तार कम पाए गए, पंप खराब हो चुके थे, और बिना बिजली कनेक्शन के 21 बोर खुदवाने में भी अनियमितता सामने आई।

वसूली की अनुशंसा

डीएफओ के आदेश पर पाली एसडीओ चंद्रकांत टिकरिहा की अगुवाई में गठित जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में कई अधिकारियों और कर्मचारियों को दोषी ठहराया। वसूली के लिए निम्नलिखित अनुशंसा की गई है:

एआर बंजारे (रिटायर्ड SDO): 11,33,189 रुपये

रेंजर धर्मेंद्र चौहान: 15,86,463 रुपये

वनपाल एसएस तिवारी: 11,33,189 रुपये

वनरक्षक दिलीप ओरेकरा: 18,568 रुपये

वनरक्षक सुरेश यादव: 1,21,122 रुपये

वनरक्षक एपी सोनी: 4,50,239 रुपये

वनरक्षक एके शुक्ला: 89,983 रुपये

फर्जीवाड़े की कोशिश नाकाम

घोटाले को छिपाने के लिए मध्य प्रदेश से मजदूर बुलाकर पौधारोपण की लीपापोती करने की कोशिश की गई, लेकिन जांच में सारी सच्चाई सामने आ गई। 10 करोड़ रुपये में से 5.50 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद कार्य की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर सवाल उठे। जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को भेज दी गई है, और अब दोषियों पर कार्रवाई की प्रतीक्षा है।

यह घोटाला वन विभाग में जवाबदेही और पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है। स्थानीय लोग और शिकायतकर्ता इस मामले में कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।