बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में इस वर्ष तेंदूपत्ता संग्रहण के आंकड़े चौंकाने वाले रहे हैं। जहां अन्य जिलों में संग्रहण अपेक्षाकृत रहा, वहीं बीजापुर वनमंडल में 1,21,600 मानक बोरा के लक्ष्य के मुकाबले मात्र 12,226 बोरा यानी 10% तेंदूपत्ता ही संग्रहित हो सका।
यह आंकड़ा पिछले वर्ष के 81% संग्रहण की तुलना में बेहद निराशाजनक है। ठेकेदारी प्रथा समाप्त होने के बाद वन विभाग को संग्रहण की जिम्मेदारी खुद संभालनी थी, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही और ढुलमुल रवैये के कारण सरकार की मंशा पर पानी फिर गया।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बीजापुर के लिए विशेष रियायतें देते हुए तेंदूपत्ता तोड़ाई की समयसीमा बढ़ाई थी और संग्रहण दर को 4,000 रुपये से बढ़ाकर 5,500 रुपये प्रति मानक बोरा कर दिया था। बावजूद इसके, उसूर और बीजापुर की समितियों में संग्रहण शुरू ही नहीं हो सका। वन विभाग ने न तो समय पर तैयारी की और न ही वनवासियों के साथ समुचित संवाद स्थापित किया।
बीजापुर डीएफओ आर. रामकृष्णा का बयान स्थिति की गंभीरता को उजागर करता है। उन्होंने कहा, “हम कुछ स्थानों पर गए थे, लेकिन ग्रामीणों ने रुचि नहीं दिखाई। अब अगर कम खरीदी हुई है तो क्या मैं खुद पत्ता तोड़ूं?” यह बयान उनकी उदासीनता को दर्शाता है। जानकारों का कहना है कि वन विभाग के पास न संसाधन हैं और न ही जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन की क्षमता। हाल ही में बारिश के कारण लाखों रुपये का तेंदूपत्ता बर्बाद हो गया, जिसने विभाग की नाकामी को और उजागर किया।
इस विफलता ने तेंदूपत्ता संग्रहण से आजीविका चलाने वाले हजारों वनवासियों को आर्थिक संकट में डाल दिया है। अब सवाल उठता है कि क्या सरकार इस असफलता की जिम्मेदारी तय करेगी?
क्या संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई होगी? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या अगले सीजन के लिए ठोस रणनीति बनेगी? ग्रामीणों की आजीविका को बचाने के लिए सरकार से तत्काल कदम उठाने की मांग उठ रही है।
Editor – Niraj Jaiswal
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