आदिवासी शक्ति पीठ: परंपरा और आस्था का संगम : डॉ. अलका यादव

कोरबा- छत्तीसगढ़।आदिवासी संस्कृति, परंपराएं और आस्थाओं का केंद्र आदिवासी शक्ति पीठ – सरना देव छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थापित किया गया है। यह न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी है।

आदिवासी संस्कृति में शिव की आराधना

डॉ. अलका यादव के अनुसार, शिव की पूजा किसी विशेष विधि-विधान की मोहताज नहीं होती। लोक जीवन में शिव की भक्ति सहज, सरल और प्राकृतिक होती है। बेलपत्र, गंगाजल और धतूरा चढ़ाने की परंपरा शिव की सादगी और उनकी सार्वभौमिकता को दर्शाती है। ग्राम्य समाज विशेष रूप से महिलाएँ और युवा शिवरात्रि एवं सोमवार के व्रत के माध्यम से शिव की आराधना करते हैं।

आदिवासी शक्ति पीठ की स्थापना का उद्देश्य

आदिवासी समाज का जीवन जल, जंगल और जमीन से जुड़ा होता है। वे अपनी विशिष्ट परंपराओं, रीति-रिवाजों और खान-पान के लिए जाने जाते हैं। डॉ. अलका यादव के अनुसार, कोरबा जिले में स्थापित यह शक्ति पीठ विश्व का पहला ऐसा स्थल है, जिसका उद्देश्य आदिवासी मूल्यों और परंपराओं का संरक्षण एवं संवर्धन करना है।

इस पवित्र स्थल पर होने वाले अनुष्ठान आदिवासी और सनातन परंपराओं के संगम को दर्शाते हैं, जो इसे विशेष बनाता है। यहाँ लोक संस्कृति, तीज-त्योहार और पारंपरिक अनुष्ठान न केवल संरक्षित किए जाते हैं, बल्कि नई पीढ़ी को भी इससे जोड़ा जाता है।

संस्कृति और आध्यात्म का संगम

डॉ. अलका यादव बताती हैं कि यह शक्ति पीठ न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह आदिवासी समाज की आत्म-परिभाषा और पहचान को भी मजबूती देता है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु आस्था और संस्कृति के अनूठे संगम का अनुभव करते हैं।

आदिवासी शक्ति पीठ – सरना देव न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के पुनर्जागरण का प्रतीक भी है। यह स्थान आदिवासी समाज को उनकी जड़ों से जोड़ने का कार्य कर रहा है और साथ ही भारतीय संस्कृति की विविधता को भी प्रदर्शित करता है।

(डॉ. अलका यादव के विचारों पर आधारित विश्लेषण)