गुंजा-सलई का स्वाद हाथियों को रोकेगा जंगल में, नहीं करेंगे गांव का रूख

काेरबा: कई तरह के प्रयोग करने के बाद भी कभी सफलता हाथ नहीं लगती और कभी-कभी अनायास ही युक्ति निकल आती हैं। ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ के काेरबा जिले में हुआ है, जहां वन विभाग को हाथियों को जंगल में रोककर रखने की तरकीब खुद हाथियों ने अपनी गतिविधि के माध्यम से बताई है।

जी हां, कटघोरा वनमंडल के एतमानगर वन परिक्षेत्र के जंगल में 48 हाथी लंबे समय से विचरण कर रहे हैं। बीच-बीच में गजराज ग्रामीणों की खेती बाड़ी को नुकसान पहुंचाते हैं। सब्जी, गन्ने, धान की फसल चट कर जाते हैं। कच्चे मकानों को नुकसान पहुंचाते हैं। नजदीक के ही कापानवापारा के जंगल में प्राकृतिक रूप से गुंजा व सलई के पेड़ों की संख्या अधिक है। इस वजह से हाथियों का एक झुंड पिछले सात माह से एक ही स्थान पर जमा हुआ है। इसका वन अफसरों ने बारीकी से अध्ययन किया तो पाया कि हाथी गुंजा व सलई के पेड़ों के पत्ते, छाल व कोमल डंठल को बड़े चाव से खा रहे हैं। इसके बाद यह योजना बनाई गई है।

वन मंडलाधिकारी कुमार निशांत ने बताया कि वन विभाग की ओर से हाथियों को जंगल में ही रोककर रखने के लिए घन जंगल के 10 हेक्टेयर क्षेत्र में गुंजा और सलई पेड़ की डाल को कलम पद्धति से रोपा जा रहा है। इसके लिए हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा की तर्ज पर योजना बनाई है।बिना किसी खर्च के वन कर्मियों को ही रोपाई कार्य में लगाया गया है। यहां बताना होगा इसी वन परिक्षेत्र के जंगल में करीब 15 एकड़ में मक्का व ज्वार की खेती की गई थी। कैंपा मद से यह खर्च वन विभाग ने किया था। आर्थिक अनियमितताओं की वजह से यह यह योजना फलीभूत नहीं हो सकी। यही वजह है कि इस बार गुंजा-सलई योजना को वन कर्मियों को ही सौंप दिया गया है।

प्राकृतिक स्त्राेतों से मिलेगा पीने को पानी

गुंजा- सलई को बीज बोआई पद्धति गुंजा-सलई परिपक्व पेड़ बनने में पांच साल का समय लग जाता है। कलम पद्धति यानी पेड़ की डंठल की कलम कटाई कर रोपे जाने पर परिपक्वता आ जाती है। बीज की भी बचत होती।

बीते वर्ष 2.75 करोड़ की जन-धन की हानि

बीते वर्ष 2022-23 में कोरबा जिले मे हाथियों ने 600 हेक्टेयर धान की फसल को नुकसान पहुंचाया था। ग्रामीण के करीब 95 मकान तोड़ दिए। वहीं 30 हेक्टेयर बाड़ी में लगे सब्जी को रौंद दिया। पांच ग्रामीणों को कुचल कर मार डाला। दस से अधिक ग्रामीण हाथी के हमले से घायल हुए। वहीं तीन हाथियों की भी मौत हुई। सभी प्रकरणों में 2.75 करोड़ रूपये प्रभावितों को प्रदान किया। हर साल क्षति का आंकाड़ा जिले में बढ़ता जा रहा। इससे निपटने वन विभाग कई तरह के तरीके अपना रहा।


घट रहे वन रकबा, बढ़ रही हाथियों की संख्या

दस साल पहले हाथियों की संख्या कोरबा और कटघोरा वन में केवल आठ थी। हाथियों का कारीडोर सरगुजार कोरबा से होते हुए धरमजयगढ़ तक था। वर्तमान में कटघोरा वन में 48 हाथी विचरण कर रहे हैं। वहीं कोरबा वन मंडल में कुदमुरा में 22 हाथियों ने डेरा डाल दिया है। संख्या बढ़ने के साथ हाथियों का विचरण क्षेत्र भी बढ़ गया है। दो साल पहले कोरबा जंगल से निकलकर चार हाथी करतला वन परिक्षेत्र से होते सक्ती दमऊ मार्ग से होकर जांजगीर जिला प्रवेश करते हुए बिलासपुर जिला तक पहुंच गए थे। पहली बार इन दोनों जिलों के परिक्षेत्र में हथियों के पहुंचने से हड़कंप मच गया था। इसी साल कोरबा वनमंडल अंतर्गत पांच हाथी शहर के भीतर नर्सरी में घुस गए थे। रात में रेस्क्यू कर उन्हे निकाला गया। हाथियों की संख्या जिस अनुपात में बढ़ रही है उसकी तुलना में जंगल का रकबा बेजा-कब्जा व अवैध कटाई के कारण कम होते जा रहा। ऐसी ही स्थिति बनी रही तों हाथियों का विचरण क्षेत्र रहवासी क्षेत्र की ओर बढ़ने के साथ मानव-द्वंद्व बढ़ेगा।

प्रभारी कर्मचारियों के भरोसे चल रहे 16 बीट

वन विभाग कर्मचारियो की कमी से जूझ रहा है अकेले कटघोरा वनमंडल के वन परिक्षेत्रों में गौर किया जाए तो 48 में 16 बीट प्रभारी कर्मचारियों के दम पर चल रहा है। कर्मचारियों की पर्याप्त नियुक्ति नहीं होने की वजह से हाथियों के दल पर निगरानी नहीं हो रही। झुंड में बंटे हाथी रात के समय एक से दूसरे स्थान पें विचरण करते हैं। कर्मचारियों की कमी की वजह से लोगों समय से पहले सतर्क करने में मुश्किल हो रही है। लागों के सतर्क होने से पहले हाथियों के दल रहवासी क्षेत्र में चले आते हैं। ऐसे में ग्रामीणों को नुकसान का सामना करना पड़ता है। इन दिनों धान फसल की बोआई पूरी होने के बाद खेताें में थरहा तैयार हो रहे हैं। राेपाई से पहले थरहा की रखवाली के लिए किसानाें को खेत के आसपास पेड़ों में मचान बनाकर रतजगा करना पड़ रहा है।