कोरबा जिले में रेत माफिया का दबदबा चरम पर पहुंच गया है। सत्ता और संगठन के कथित संरक्षण में अवैध रेत खनन ने न केवल सरकारी राजस्व को भारी नुकसान पहुंचाया है, बल्कि हिंसक घटनाओं का खतरा भी बढ़ा दिया है। स्थानीय लोगों में भय और असंतोष का माहौल है, क्योंकि माफिया बेखौफ होकर नदियों को लूट रहे हैं।
कोरबा के वैध और अवैध रेत घाटों पर माफियाओं का कब्जा है। शहर से लेकर दूरस्थ गांवों तक, रेत के अवैध खनन की होड़ मची है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सत्ताधारी दल से जुड़े कुछ प्रभावशाली नेताओं और उनके करीबियों का इस कारोबार में दबदबा है। माफिया सरकारी निर्माण, औद्योगिक इकाइयों और निजी कार्यों के लिए अवैध रेत की आपूर्ति कर रहे हैं, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है।
कोरबा के वैध और अवैध रेत घाटों पर माफियाओं का कब्जा है। शहर से लेकर दूरस्थ गांवों तक, रेत के अवैध खनन की होड़ मची है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सत्ताधारी दल से जुड़े कुछ प्रभावशाली नेताओं और उनके करीबियों का इस कारोबार में दबदबा है। माफिया सरकारी निर्माण, औद्योगिक इकाइयों और निजी कार्यों के लिए अवैध रेत की आपूर्ति कर रहे हैं, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है।
प्रशासन की निष्क्रियता: कलेक्टर के सख्त निर्देशों के बावजूद, खनिज विभाग और गठित टास्क फोर्स अवैध खनन को रोकने में पूरी तरह विफल रही है।
रेत माफिया की बेखौफी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में एक युवा पत्रकार को सत्ताधारी दल के एक नेता के सामने गोली मारने की धमकी दी गई।
कुदुरमाल और कुदमुरा में रेत घाटों को लेकर हुए विवादों ने हिंसक रूप ले लिया है। एक पंचायत प्रतिनिधि ने खनिज विभाग पर प्रभावशाली लोगों के दबाव में काम करने का आरोप लगाया है। स्थानीय लोग और पंच जब रायल्टी की मांग करते हैं, तो उन्हें धमकियां मिलती हैं।
कई अधिकारी और स्थानीय लोग मानते हैं कि सत्ता, संगठन और प्रशासन के बीच तालमेल की कमी के कारण यह अराजकता बढ़ रही है। कुछ अधिकारी खुलकर कहते हैं कि जब सत्ताधारी नेता और संगठन के लोग ही रेत चोरी को रोकना नहीं चाहते, तो प्रशासन कितना सख्ती कर सकता है। सत्ता परिवर्तन के बाद लोगों को सुशासन की उम्मीद थी, लेकिन कई लोग कहते हैं कि सरकार का अहसास तक नहीं हो रहा।
आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान
अवैध रेत खनन से सरकारी खजाने को चूना लग रहा है और नदियों का प्राकृतिक स्वरूप बिगड़ रहा है। इससे जल संरक्षण और अभ्यारण्य प्रभावित हो रहे हैं, जिसका असर कृषि और पर्यावरण पर पड़ रहा है।
आगे की राह
स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि सरकार और प्रशासन अवैध खनन पर सख्त कार्रवाई करे। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो कोरबा में हिंसक घटनाएं और बढ़ सकती हैं। सत्ता और संगठन के बीच बेहतर समन्वय और पारदर्शी कार्रवाई ही इस समस्या का समाधान कर सकती है।
निष्कर्ष: कोरबा में रेत माफिया का आतंक न केवल आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान का कारण बन रहा है, बल्कि सामाजिक शांति और सुशासन पर भी सवाल उठा रहा है। सरकार को तत्काल प्रभावी कदम उठाने होंगे, वरना जनता का असंतोष और गहरा सकता है।
Editor – Niraj Jaiswal
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