कोरबा-पेण्ड्रारोड रेल लाइन निर्माण में देरी, 2025 तक पूरा होने की संभावना नहीं

कोरबा। गेवरारोड से पेण्ड्रारोड के बीच इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर के तहत बन रही 135 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का निर्माण कार्य इस साल के अंत तक पूरा नहीं हो सकेगा।

सुस्त गति से चल रहे निर्माण कार्य के कारण यह परियोजना अपने निर्धारित समय से पीछे चल रही है। इस दोहरी रेल लाइन पर लगभग 5000 करोड़ रुपये की लागत आएगी, जिसका उद्देश्य कोयला खदानों से कोयले को मध्यप्रदेश और उत्तर भारत के अन्य राज्यों तक आसानी से पहुंचाना है।

यह रेल लाइन गेवरारोड से कुसमुंडा, दीपका, पुटवा, मातिन, पसान होते हुए पेण्ड्रारोड तक जाएगी। वर्ष 2014 में साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल), रेलवे और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच इस परियोजना के लिए अनुबंध हुआ था।

2024 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन काम की धीमी रफ्तार के कारण यह लक्ष्य अधूरा रह गया। अब 2025 के अंत तक भी इसके पूरा होने की संभावना कम दिख रही है।

वर्तमान में दीपका से पुटीपखना और मोहनपुर, सिंघिया से मातिन की ओर जाने वाले सेक्शन में निर्माण कार्य अधूरा है। इन हिस्सों में केवल मिट्टी भरने का काम ही हुआ है, जबकि पुल-पुलिया निर्माण में भारी देरी हो रही है। मातिन के पास नाले पर पुल निर्माण के लिए अंडरपास का काम शुरू हुआ है, लेकिन बरसात के कारण इसका पूरा होना मुश्किल लग रहा है।

पसान के पास रेल लाइन के लिए मिट्टी भरने का काम भी शुरू नहीं हुआ है, और पेड़-पौधों को काटकर जमीन साफ करने तक ही काम सीमित है। पेण्ड्रारोड तक का हाल भी कुछ ऐसा ही है। रेल प्रशासन और एसईसीएल प्रबंधन ने 2024 तक लाइन पूरी करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन वर्तमान प्रगति को देखते हुए 2026 से पहले कार्य पूरा होने की उम्मीद कम है।

निर्माण में देरी से बढ़ीं समस्याएं
इस रेल लाइन का निर्माण कोयला परिवहन को सुगम बनाने के लिए किया जा रहा है, लेकिन देरी के कारण कोयला ढुलाई में परेशानी हो रही है। इससे कोरबा के स्थानीय लोगों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बार-बार रेल फाटक बंद होने से जाम की स्थिति बन रही है, और यात्री गाड़ियों का संचालन भी शुरू नहीं हो पा रहा है। इस देरी से क्षेत्र की आर्थिक और यातायात व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

स्थानीय लोग और उद्योग इस परियोजना के जल्द पूरा होने की मांग कर रहे हैं, ताकि कोयला परिवहन और यात्री सुविधाओं में सुधार हो सके। रेल प्रशासन और एसईसीएल से इस दिशा में तेजी लाने की अपेक्षा की जा रही है।