कोरबा : साऊथ ईस्टर्न कोलफिल़्डस लिमिटेड (एसईसीएल) की खुली खदानों में वर्षा का असर दिखने लगा है। कोरबा में संचालित कंपनी के तीनों मेगा प्रोजेक्ट में लगातार वर्षा की वजह से उत्पादन घट गया है। एक सप्ताह पहले तक कंपनी में छह लाख से अधिक कोयला का उत्पादन प्रतिदिन हो रहा था, वह अब घट कर चार लाख टन हो गया है। खदानों में पानी निकासी की व्यवस्था की गई है, बावजूद इसके लगातार वर्षा होने की वजह से खदान के कुछ क्षेत्रों में पानी भर गया है। लगातार मोटर पंप से पानी निकालने का कार्य चल रहा। इस बीच भारी वाहनों के पहिए फंस जा रहे।
मानसून शुरू होने के साथ ही कोयला खदानों में उत्पादन प्रभावित होने लगता है। इसे मद्देनजर रखते हुए कोल इंडिया व एसईसीएल के वरिष्ठ अधिकारियों की निगरानी में खदान से पानी निकासी व्यवस्था बनाई जा रही थी। बेहतर व्यवस्था होने के बाद भी लगातार वर्षा होने से खदानों में इसका असर बढ़ जाता है और पानी भरना स्वाभाविक होता है। कुछ ऐसी ही स्थिति लगातार पिछले चार दिनों से वर्षा होने की वजह से बन गई है। खदानों में कार्य की गति धीमी पड़ गई है। 24 घंटे में छह लाख तक कोयले का उत्पादन कोयला कामगार कर रहे थे, पर अब चार लाख टन उत्पादन में ही पसीना निकल जा रहा। देश की सबसे बड़ी गेवरा कोयला खदान में उत्पादन कम होने पर सीधे कोयला आपूर्ति पर असर पड़ता है।
वर्तमान में गेवरा समेत कुसमुंडा व दीपका मेगा परियोजना में भी वर्षा काल का असर देखा जा रहा। वर्ष 2021 में दीपका कोयला खदान में लीलागर नदी का पानी समाहित हो गया था। पानी भरने की वजह से झील जैसा दृश्य निर्मित हो गया था। खदान के करीब 75 प्रतिशत हिस्सा में उत्पादन तीन माह तक पूरी तरह ठप रहा। किसी तरह पानी बाहर निकाले जाने के बाद काम ने गति पकड़ा। इस तरह की घटना की पुनरावृ्त्ति न हो, इसका ख्याल प्रबंधन रख रही। खास तौर पर नदी के नजदीक संचालित खदानों के इर्द गिर्द 24 घंटे वाकी-टाकी से लैस कर्मियों की निगरानी ड्यूटी लगाई गई है।
एचटीपीपी में केवल चार दिन का कोयला, संकट की स्थिति
एसईसीएल की पहली तिमाही रिपोर्ट पर नजर डालें तो तीनों मेगा प्रोजेक्ट में सबसे कमजोर प्रदर्शन कुसमुंडा खदान का रहा है। यहां उत्पादन कम होने की वजह से आपूर्ति भी अपेक्षाकृत कम रही है। इस खदान से सीधे छ्त्तीसगढ़ विद्युत उत्पादन कंपनी (सीजीएसजीसीएल) की हसदेव ताप विद्युत संयंत्र (एचटीपीपी) में कोयला आपूर्ति की जाती है। खदान व संयंत्र के बीच कन्वेयर बेल्ट सिस्टम लगाया गया है। पिछले तीन दिन से नियमित कोयला आपूर्ति प्रभावित हुआ है। इसकी वजह से संयंत्र का कोयला स्टाक केवल करीब एक लाख टन ही शेष बचा है। यह केवल चार दिन का ही स्टाक है। इसे संकट की परिस्थिति कहा जा सकता है। खदान से कोयला कम तो मिल रहा साथ ही वर्षा की वजह से कन्वेयर बेल्ट भी सामान्य रूप से नहीं चल रहे।
मड़वा में 20 दिन और डीएसीपीएम में 21 दिन का कोयला
सीजीएसजीसीएल की ही मड़वा प्रोजेक्ट 3.20 लाख टन कोयला है। यह 20 दिन का स्टाक है। उधर डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत संयंत्र (डीसीएसपीएम) में लगभग 2.10 लाख टन कोयला स्टाक में है। यह करीब 21 दिन का स्टाक है। नियमत: 20 दिन का कोयला बिजली संयंत्रों के स्टाक में होना चाहिए। वर्षा काल में कोयले की आपूर्ति होने की आशंका रहती है। ऐसे में मानसून से पहले कोयले का स्टाक में वृद्धि की जाती है। अब सवाल यह उठता है कि इस नियम का पालन विद्युत संयंत्रों के जवाबदार अधिकारियों ने क्यों नहीं किया।
24 घंटे से एक इकाई बंद, उमस ने बढ़ाई बिजली की मांग
एचटीपीपी संयंत्र के 210 मेगावाट की दो नंबर इकाई में वार्षिक रखरखाव का काम किया जा रहा है, इस वजह से इकाई को बंद रखा गया है। इधर 210 मेगावाट की ही एक नंबर के जनरेटर में तकनीकी खराबी आ गई। इस वजह से 24 घंटे से इकाई बंद है। तकनीकी कर्मियों द्वारा सुधार कार्य किया जा रहा है। संभावना जताई जा रही है कि गुरूवार की सुबह तक इकाई चालू कर ली जाएगी। सीएसपीजीसीएल के सभी संयंत्रों से कुल 1991 मेगावाट बिजली उत्पादित हो रही थी। शेष तीन हजार मेगावाट बिजली सेंट्रल सेक्टर से लेकर उपभोक्ताओं को प्रदान की जा रही। वर्षा होने के बाद भी पीकअवर्स में राज्य में बिजली की मांग अधिकतम 5147 मेगावाट के करीब रही।
पानी भराव न हो , इसके लिए आवश्यक उपाय करें:डीटी
एसईसीएल के निदेशक तकनीक एसएन कापरी एवं जयकुमार फ्रेंकलिन ने कुसमुंडा व दीपका मेगा प्रोजेक्ट का आकस्मिक निरीक्षण किया। इस दौरान अधिकारियों ने खदान के नीचे उतर स्थिति का जायजा लिया। मानसून में पानी भराव न हो , इसके लिए खदान में किए गए आवश्यक उपाय को देखा। बताया जा रहा है कि कुसमुंडा खदान में पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने की वजह से अधिकारियों ने नाराजगी जताई। उन्होंने पानी निकासी के लिए समुचित व्यवस्था करने कहा। ताकि उत्पादन पर किसी तरह का असर न पड़े। इसके साथ ही एसईसीएल सेफ्टी बोर्ड के सदस्य भी कुसमुंडा खदान पहुंचे और खदान में अपनाए जा रहे सुरक्षा व्यवस्था का निरीक्षण किया।
Editor – Niraj Jaiswal
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